किसी भी भाषा में कई शब्द ऐसे होते हैं जो सुनने या देखने में एक सामान लगते हैं। यहाँ तक कि व्यवहार में भी वे एक सामान लगते हैं। और कई बार इस वजह से उनके प्रयोग में लोग गलतियां कर बैठते हैं। आमंत्रण और निमंत्रण भी इसी तरह के शब्द हैं। अकसर लोगों को आमंत्रण की जगह निमंत्रण और निमंत्रण की जगह आमंत्रण का प्रयोग करते हुए देखा जाता है। हालांकि दोनों के प्रयोग में मंशा किसी को बुलाने की ही होती है अतः लोग अर्थ समझ कर उसी तरह की प्रतिक्रिया करते हैं अर्थात उनके यहाँ चले जाते हैं और कोई बहुत ज्यादा परेशानी नहीं होती है। किन्तु यदि शब्दों की गहराइयों में जाया जाय तो दोनों शब्दों में फर्क है और दोनों के प्रयोग करने के अपने नियम और सन्दर्भ हैं।
आमंत्रण और निमंत्रण में क्या अंतर है
आमंत्रण और निमंत्रण दोनों शब्दों में मन्त्र धातु का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ है मंत्रणा करना अर्थात बात करना या बुलाना होता है परन्तु “आ” और “नि” प्रत्ययों की वजह से उनके अर्थों में थोड़ा फर्क आ जाता है।
“अत्र यस्याकारणे प्रत्यवायास्ताननिमन्त्रणम। यथा, इह भुअंजित भवान। यस्याकारणे प्रत्यवायो न स्यात तदा -मंत्रणम। यथा, इह शयीत भवान। इति निमन्त्रणामन्त्रणयोर्भेदः। ” इति मुग्धबोध -टीकायां दुर्गदासः। “
अर्थात जिसके बुलावा हो जाने पर, प्रत्यवाय हो वो निमंत्रण होता है यानि जिसमे बुलाये जाने पर वापस होना हो वो निमंत्रण है। उदहारण के लिए आप मेरे घर भोजन पर निमंत्रित हैं अर्थात आप का भोजन करने के बाद लौटना अपेक्षित है। जिसमे आकरण करने पर प्रत्यवाय अपेक्षित नहीं हो उसे आमंत्रण कहते हैं। जैसे आप यहाँ मंच पर भाषण देने के लिए आएं।