भारतीय दंड संहिता यानि इंडियन पीनल कोड दुनियां के सबसे पुरानी दंड संहिताओं में से एक है। इंडियन पीनल कोड को अंग्रेजों के शासन काल में 1860 में तैयार किया गया था और इसे 1862 में लागू किया गया था। इसमें समय और परिस्थितियों के बदलाव के साथ कई संशोधन भी होते रहे हैं। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् इसी दंड संहिता को कई बदलावों के साथ भारत में स्वीकार किया गया। भारत के साथ साथ लगभग इसी संहिता को कई अन्य देशों में जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, मलयेशिआ, सिंगापूर आदि देशों में अपनाया गया है।
भारत में किसी व्यक्ति की हत्या को जघन्य अपराध माना जाता है और यह अपराध किसी भी तरह से समझौता करने योग्य नहीं माना जाता है। भारत में इस तरह के अपराधों में अपराधी की सजा के लिए कानून में व्यवस्था की गयी है। भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड में हत्या को परिभाषित किया गया और इसके लिए सजा का प्रावधान भी किया गया है।
भारतीय दंड संहिता में धारा 302 एक महत्वपूर्ण धारा है जिसमे मानव हत्या के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। मानव हत्या कई तरह से हो सकती है कई बार तो अपराधी किसी की हत्या जानबूझ कर हत्या के इरादे से करता है तो कई ऐसे भी मामले आते हैं जहाँ हत्या न तो उसका इरादा था और न ही उसका मकसद।
इंडियन पीनल कोड की धारा 300 में हत्या को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि एतस्मिन पश्चात अपवादित मामलों को छोड़कर आपराधिक गैर इरादतन मानव वध हत्या है, यदि ऐसा कार्य, जिसके द्वारा मॄत्यु कारित की गई हो, या मॄत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो, अथवायदि कोई कार्य ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो जिससे उस व्यक्ति की, जिसको क्षति पहुँचाई गई है, मॄत्यु होना सम्भाव्य हो, अथवा यदि वह कार्य किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो और वह आशयित शारीरिक क्षति, प्रकॄति के मामूली अनुक्रम में मॄत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो, अथवा
यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि कार्य इतना आसन्न संकट है कि मॄत्यु कारित होने की पूरी संभावना है या ऐसी शारीरिक क्षति कारित होगी जिससे मॄत्यु होना संभाव्य है और वह मॄत्यु कारित करने या पूर्वकथित रूप की क्षति पहुँचाने का जोखिम उठाने के लिए बिना किसी क्षमायाचना के ऐसा कार्य करे ।
इंडियन पीनल कोड की धारा 302 में इसी परिभाषित हत्या को करने वाले व्यक्ति को दंड देने की व्यवस्था की गयी है। इस धारा के अनुसार जो भी किसी व्यक्ति की हत्या का दोषी पाया जाएगा उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा अथवा उसे आजीवन कारावास के साथ साथ आर्थिक दंड भी लगाया जाएगा।
इंडियन पीनल कोड में धारा 302 के कुछ प्रावधान दिए गए हैं और इस धारा को लगाने के लिए मामले को इन प्रावधानों की सभी शर्तों को पूरा करना होता है। चूँकि धारा 302 में बहुत ही सख्त सजा का प्रावधान किया गया है अतः न्यायलय मामले को अच्छी तरह से विवेचना करके देखता है कि यहां धारा 302 का प्रयोग किया जा सकता है या नहीं। यदि मामला धारा 302 की सभी शर्तों को पूरा नहीं करता वहां किसी और धारा का प्रयोग किया जाता है। कई हत्या के केस ऐसे होते हैं जहाँ हत्या तो हुई है किन्तु मारने वाले व्यक्ति का हत्या करने का कोई इरादा नहीं होता है। ऐसे मामले में धारा 302 के स्थान पर इंडियन पीनल कोड की दूसरी धारा 304 का प्रयोग किया जाता है। धारा 304 भी मानव वध के लिए उचित सजा की व्यवस्था करता है।
धारा 304 में भी हत्या के लिए सजा का प्रावधान किया गया है किन्तु इस तरह की हत्या का विवरण इंडियन पीनल कोड की धारा 299 में दिया गया है। धारा 299 के अनुसार जो भी कोई मृत्यु कारित करने के आशय से, या शारीरिक क्षति पंहुचाने के आशय से जिसमे मृत्यु होना सम्भाव्य हो, या यह जानते हुए कि यह सम्भाव्य है कि ऐसे कार्य से मृत्यु होगी, कोई कार्य करके मृत्यु कारित करता है, वह गैर इरादतन हत्या या आपराधिक मानव वध का अपराध करता है।
धारा 304 एक गैर जमानती, संज्ञेय अपराध है। यह सत्र न्यायलय में विचारणीय होता है। गैर इरादतन मानव वध ( जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता ) अथवा ऐसा कार्य जो मृत्यु का कारण हो, जिसे मृत्यु देने के इरादे से किया गया हो, या ऐसी शारीरिक चोट जो मृत्यु का कारण हो सकता हो, धारा 304 के अंतर्गत विचारणीय होता है। ऐसे अपराधों के सिद्ध हो जाने पर न्यायलय अपराधी को धारा 304 के तहत आजीवन कारावास या 10 वर्ष का कारावास और आर्थिक दंड की सजा सुनाता है।
धारा 302 और धारा 304 दोनों ही मानव वध के लिए सजा का प्रावधान करते हैं। दोनों के अंतर्गत आने वाले अपराध जघन्य, संज्ञेय और गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आते हैं। दोनों ही धारा में अपराध समझौता योग्य नहीं होते हैं। दोनों ही स्थितियों में हत्या का होना एक अनिवार्य शर्त होती है। कई समानताओं के बावजूद धारा 302 और धारा 304 में कई अंतर है
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