भारतीय दंड संहिता में मानव हत्या को गंभीरतम अपराध माना गया है। इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान है। किन्तु कई बार अपराधी हत्या की कोशिश तो करता है किन्तु व्यक्ति की मृत्यु नहीं हो पाती, इस स्थिति में इसे हत्या का प्रयास मान कर मुक़दमे की सुनवाई होती है। इस तरह इन्हें दो तरह के अपराधों की श्रेणी में रखकर इनके लिए सजा निर्धारित की गयी है। जहाँ मानव हत्या के लिए धारा 302 लगती है वहीँ हत्या के प्रयास के लिए धारा 307 में सजा का प्रावधान है। आइये जाने धारा 302 और धारा 307 क्या हैं और इनके लिए कौन सी सजाएँ निर्धारित हैं और दोनों में अंतर क्या हैं
धारा 302 मानव हत्या के अपराध के लिए सजा की व्यवस्था करता है। चूँकि मानव हत्या कई तरह से हो सकती है। कई बार अपराधी किसी की हत्या जानबूझ कर नहीं करता और न ही हत्या उसका मकसद होता है किन्तु हत्या हो जाती है। ऐसी स्थिति में हत्या के लिए सजा का निर्धारण करना कठिन हो जाता है । धारा 302 में उन हत्याओं के लिए सजा का प्रावधान है जिनकी परिभाषा धारा 300 में दी गयी है।
इंडियन पीनल कोड की धारा 300 में हत्या को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि एतस्मिन पश्चात अपवादित मामलों को छोड़कर आपराधिक गैर इरादतन मानव वध हत्या है, यदि ऐसा कार्य, जिसके द्वारा मॄत्यु कारित की गई हो, या मॄत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो, अथवायदि कोई कार्य ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो जिससे उस व्यक्ति की, जिसको क्षति पहुँचाई गई है, मॄत्यु होना सम्भाव्य हो, अथवा यदि वह कार्य किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो और वह आशयित शारीरिक क्षति, प्रकॄति के मामूली अनुक्रम में मॄत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो, अथवा यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि कार्य इतना आसन्न संकट है कि मॄत्यु कारित होने की पूरी संभावना है या ऐसी शारीरिक क्षति कारित होगी जिससे मॄत्यु होना संभाव्य है और वह मॄत्यु कारित करने या पूर्वकथित रूप की क्षति पहुँचाने का जोखिम उठाने के लिए बिना किसी क्षमायाचना के ऐसा कार्य करे ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 302 में हत्या के लिए सजा का प्रावधान है। इस धारा में मानव हत्या जिसकी परिभाषा धारा 300 में दी गयी है, करने वाले अपराधी को मृत्युदंड देने की अनुशंसा की गयी है। कुछ मामलों में आजीवन कारावास और आर्थिक दंड लगाने की व्यवस्था की गयी है।
धारा 302 एक संगीन, गैर जमानती और संज्ञेय अपराध की धारा है जो किसी भी तरह से समझौता करने योग्य नहीं मानी जाती है। इस धारा के आरोपितों की सुनवाई सत्र न्यायलय में की जा सकती है। इस धारा के अंतर्गत आने वाली हत्या में सबसे ख़ास बात हत्या का इरादा और मकसद देखा जाता है। न्यायलय इस तरह के मुक़दमे की सुनवाई करते समय इन बातों का ध्यान रखता है कि अपराधी के पास हत्या का इरादा और मकसद था या नहीं।
धारा 302 की तरह धारा 307 का भी सम्बन्ध मानव हत्या से है किन्तु इस धारा में उन्हीं मुकदमों को शामिल किया जाता है जिसमे हत्या न होकर हत्या की कोशिश की गयी हो। धारा 307 के अंतर्गत उन सभी हत्या प्रयासों को शामिल किया जाता है जिनमे हत्या की कोशिश पूर्ण उद्द्येश्य और मकसद से किया गया हो और हो सकता था व्यक्ति की मृत्यु हो जाए।
इंडियन पीनल कोड में धारा 307 में कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की हत्या की कोशिश करता है और हत्या में वह असफल रहता है, के लिए सजा का प्रावधान है। यदि व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की हत्या कर देता है तब भारतीय दंड संहिता की इस धारा का प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इस धारा में केवल हत्या कोशिश तक का दायरा आता है। हत्या हो जाने की स्थिति में उस व्यक्ति पर धारा 302 के तहत मुक़दमा चलेगा।
इंडियन पीनल कोड में धारा 307 में हत्या की कोशिश करने वाले आरोपी के लिए बहुत कठोर सजा निर्धारित की गयी है। यह एक संगीन अपराध की श्रेणी में आता है और मृत्यु कारित करने का प्रयास माना जाता है जिसमे किसी वजह से व्यक्ति की जान बच जाती है। इस अपराध के लिए न्यायलय दस वर्ष की कैद और आर्थिक दंड की सजा सुना सकता है। जुर्म की गहराई को मद्देनज़र रखते हुए न्यायलय दोषी को उम्रकैद की सजा भी सुना सकता है। धारा 307 में एक तथ्य को बाद में जोड़ा गया है जिसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति हत्या का प्रयास करता है जिसे पहले ही किसी अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी है तो ऐसे व्यक्ति को न्यायलय मृत्यु दंड भी दे सकता है।
धारा 307 के तहत हुए अपराध को मद्देनज़र रखते हुए इसे गैर जमानती बनाया गया है। इसमें अपराधी को पुलिस स्टेशन से जमानत नहीं मिल सकती साथ ही साथ उसके जमानत की अर्जी को जिला न्यायलय भी खारिज कर देता है। इस तरह के अपराध में उच्च न्यायलय में जमानत की कुछ सम्भावना होती है जिसमे न्यायलय अपराध में अपराधी की संलग्नता में संदेह की स्थिति में या आरोपी के घर में कोई गंभीर आपात स्तिथि हो रही है, की दशा में उच्च न्यायालय आरोपी की जमानत याचिका को मंजूरी दे देती है। धारा 307 में अपराधी कोई अग्रिम जमानत नहीं ले सकता।
उपसंहार
भारतीय दंड संहिता ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में मानव हत्या और हत्या के प्रयास के लिए सजा निर्धारित किया है। इस तरह के अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता ने अलग अलग धाराएं निर्धारित की है जिसमे हत्या होने पर धारा 302 और हत्या का प्रयास होने पर धारा 307 में इनके लिए सजाओं का निर्धारण किया है। दोनों ही अपराध संज्ञेय,गैर समझौतावादी और गैर जमानती माने गए हैं।