मोबाइल, इंटरनेट और ईमेल के इस जमाने ने डाक द्वारा पत्रों के आदान प्रदान को भले ही कम कर दिया हो परन्तु एक समय था जब सूचना के आदान प्रदान का एक मात्र साधन डाक विभाग ही था। उस जमाने में डाक विभाग पर बहुत ही ज्यादा लोड था और पत्रों तथा पार्सलों की सॉर्टिंग बड़ी जिम्मेदारी का काम समझा जाता। लिखने वाले ने जरा सी चूक की या छंटनी करने वाले की थोड़ी भी लापरवाही हुई तो मथुरा का पत्र मदुरै, मऊ का पार्सल महू पंहुच जाता। कई बार तो एक ही नाम के दो स्थानों की वजह से भी सॉर्टिंग में परेशानी होती। ऐसे में सरकार को एक ऐसे सिस्टम की आवश्यकता महसूस होने लगी जिससे इस तरह की गलतियां न हो और पत्र आसानी से अपने सही ठिकाने पर पंहुच सके। इन्हीं सब परेशानियों को दूर करने के लिए और डाक को उसके सटीक पते पर पंहुचाने के लिए पोस्टल कोड और Zip Code की शुरुवात की गयी। इसके लिए हर स्थान को एक विशेष नंबर दिया गया और इन्ही नम्बरों द्वारा उन स्थानों की यूनिक पहचान बनायी गयी। इन नम्बरों को पिन कोड या Zip Code कहा गया। इन कोडों की वजह से डाक विभाग को काफी सहूलियतें मिलीं और अब डाक सरलता पूर्वक, तीव्र गति से अपने सटीक गंतव्य पर पंहुचने लगे।
पिन कोड का फुलफॉर्म क्या होता है
पिन कोड की शुरुवात कब हुई
पिन कोड कितने अंक का होता है
भारत में पिन कोड के कितने क्षेत्र हैं
पोस्टल कोड जिसे पिन कोड या पिन नंबर के नाम से भी जाना जाता है, एक संख्या होती है जिसके द्वारा किसी विशिष्ट स्थान को दर्शाया जाता है। वास्तव में पोस्टल कोड एक ऐसी प्रणाली या सिस्टम है जिसके द्वारा स्थान विशेष को एक सांख्यिक पहचान प्रदान की जाती है। पोस्टल कोड की वजह से डाक विभाग को एक जैसे नाम या मिलते जुलते नामों वाले स्थान की वजह से आने वाली समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है और वे बड़ी ही आसानी से पत्र या पार्सल के गंतव्य स्थान का पता लगा लेते हैं।
पिन कोड का फुलफॉर्म क्या होता है
पिन कोड की शुरुवात कब हुई
पोस्टल कोड यानि पिन कोड वास्तव में पोस्टल इंडेक्स नंबर का संक्षिप्त रूप है। यह छह अंकों की एक संख्या होती है जिसे डाक या पार्सल में पते के साथ लिखा जाता है। डाक विभाग और कुरियर वाले इसी नंबर के द्वारा डाक पार्सल की डिलीवरी के लोकेशन का पता करते हैं। पोस्टल कोड की शुरुवात पूर्व सोविएत संघ में 1959 में हुई थी जिसे धीरे धीरे दुनियां के कई अन्य देशों ने भी अपनाया। भारत में इसकी शुरुवात 15 अगस्त 1972 को किया गया था। कुछ देशों में पोस्टल कोड पुरे के पुरे अंकों में होते हैं जबकि कई अन्य देशों में इसमें कुछ अक्षर और कुछ अंक भी होते हैं।
पोस्टल कोड के छह अंकों में पहला अंक भारत के उस क्षेत्र को दर्शाता है जिसमे पते पर दिया गया एरिया स्थित है। पिन कोड के पहले दो अंक उस क्षेत्र में उपस्थित डाक सर्किल को दिखाता है। इसी तरह पहले तीन अंक जिले को इंगित करते हैं और अंतिम तीन अंक उस डाक क्षेत्र को दर्शाते हैं जहाँ वह डाक जानी है। इस प्रकार यह कोड किसी डाक को उसके गंतव्य तक पंहुचने में आसान, त्रुटिहीन और सटीक बनाते हैं।
भारत में पिन कोड के कितने क्षेत्र हैं
भारत में 9 पोस्टल कोड हैं। इन कोडों का विवरण इस प्रकार है :
Zip Code क्या है
Zip Code का फुलफॉर्म क्या है
Zip Code की शुरुवात कब हुई
पिन कोड की तरह ही ज़िप कोड (ZIP Code) एक विशिष्ट संख्या होती है जिससे किसी स्थान विशेष की पहचान होती है। Zip Code के द्वारा किसी पार्सल या डाक के एग्जैक्ट लोकेशन का पता आसानी से लगाया जा सकता है। Zip Code के प्रचलन ने अमेरिका में डाक और पार्सल सर्विस को तीव्र, आसान और काफी सटीक बना दिया।
Zip Code वास्तव में अमेरिकन डाक विभाग द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला एक संक्षिप्त शब्द है जिसका फुलफॉर्म होता है ज़ोनल इम्प्रूवमेंट प्लान (Zonal Improvement Plan) । Zip Code को सबसे पहले यूनाइटेड स्टेट्स पोस्टल सर्विसेज द्वारा 1963 द्वारा शुरू किया गया था।
Zip Code यानि जोनल इम्प्रूवमेंट प्लान एक 5 अंक का कोड होता है जिसमे पहला अंक राष्ट्रीय क्षेत्र को दर्शाता है। इसके बाद के दो अंक उस क्षेत्र में स्थित जिले के पोस्ट ऑफिस को बताते हैं जबकि आखिरी दो अंक से लोकल पोस्ट ऑफिस का पता चलता है। इस तरह किसी पत्र या पार्सल को उसके गंतव्य तक पंहुचाना काफी सरल और तीव्र हो जाता है। Zip Code की शुरुवात होने से अमेरिका में डाक में खोने या गायब होने वाले या अपने निर्दिष्ट स्थान पर किसी वजह से न पंहुच पाने वाले पत्रों की संख्या में भारी कमी आयी। बाद के वर्षों में डाक और पार्सल को और भी सटीक बनाने के लिए Zip Code में चार और अंक जोड़े गए।
पिन कोड और Zip Code में क्या अंतर है
Conclusion