भारत में कई मंदिर अपनी चमत्कारिक और रहस्यमयी शक्तियों की कारण न केवल भारतवर्ष में बल्कि पूरी दुनियां में प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों के प्रति भक्तों का ऐसा विश्वास है कि प्रतिदिन लाखों की संख्या में लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। इन्हीं मंदिरों में मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी का भी नाम है। इन मंदिरों की चमत्कारी शक्तियों के कारण भक्तों का यहाँ तांता लगा रहता है। इन दोनों ही मंदिरों के नाम एक जैसे होने के कारण कई बार लोग भ्रमित हो जाते हैं और दोनों को एक ही समझने की भूल कर बैठते हैं। वास्तव में ऐसा बिलकुल भी नहीं है। दोनों एकदम अलग अलग मंदिर हैं और दोनों ही अलग अलग देवताओं को समर्पित हैं। आज हम भारत के इन्हीं दोनों मंदिर के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मेंहदीपुर वाले बालाजी
“भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे ” हनुमान चालीसा की यह पंक्ति का सच देखना है तो आपको मेहंदीपुर वाले बाला जी के मंदिर आना होगा। जी हाँ मंदिर में प्रांगण में पहुंचते ही व्यक्ति के अंदर की बुरी शक्तियां जैसे भूत, प्रेत, पिशाच कांपने लगते हैं। यहां प्रेतात्मा को शरीर से मुक्त करने के लिए उसे कठोर से कठोर दंड दिया जाता है। हम बात कर रहें हैं राजस्थान के दौसा जिले में स्थित प्रसिद्ध हनुमान मंदिर की जिसे मेहंदीपुर बालाजी के नाम से जाना जाता है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी का प्रसाद
बालाजी मंदिर की खासियत है कि यहां बालाजी को लड्डू, प्रेतराज को चावल और भैरों को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कहते हैं कि बालाजी के प्रसाद के दो लड्डू खाते ही भूत-प्रेत से पीड़ित व्यक्ति के अंदर मौजूद भूत प्रेत छटपटाने लगता है और अजब-गजब हरकतें करने लगता है। यहां पर चढ़ने वाले प्रसाद को दर्खावस्त और अर्जी कहते हैं। मंदिर में दर्खावस्त का प्रसाद लगने के बाद वहां से तुरंत निकलना होता है। जबकि अर्जी का प्रसाद लेते समय उसे पीछे की ओर फेंकना होता है। इस प्रक्रिया में प्रसाद फेंकते समय पीछे की ओर नहीं देखना चाहिए। आमतौर पर मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद लोग प्रसाद लेकर घर आते हैं लेकिन मेंहदीपुर बालाजी मंदिर से मेहंदीपुर में चढ़ाया गया प्रसाद यहीं पूर्ण कर जाएं। इसे घर पर ले जाने का निषेध है। खासतौर से जो लोग प्रेतबाधा से परेशान हैं, उन्हें और उनके परिजनों को कोई भी मीठी चीज और प्रसाद आदि साथ लेकर नहीं जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सुगंधित वस्तुएं और मिठाई आदि नकारात्मक शक्तियों को अधिक आकर्षित करती हैं। इसलिए इनके संबंध में स्थान और समय आदि का निर्देश दिया गया है।
मेंहदीपुर बाला जी के दर्शन करने वालों के लिए कुछ विशेष नियम होते हैं। यहां आने से कम से कम एक सप्ताह पहले लहसुन, प्याज, अण्डा, मांस, शराब आदि तामसिक चीज़ों का सेवन बंद करना होता है। सर्वप्रथम बालाजी महाराज के दर्शन से पूर्व प्रेतराज सरकार के दर्शन और प्रेतराज चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके बाद बालाजी महाराज के दर्शन और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए और सबसे अन्त में कोतवाल भैरवनाथ के दर्शन करने के बाद भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। मंदिर में किसी से कोई भी चीज़ यहां तक कि प्रसाद भी न लें और न ही किसी को कोई भी चीज़ जैसे प्रसाद न दें। आते तथा जाते समय भूल से भी पीछे मुड़कर न देखें। आने और जाने की दरखास्त लगाकर जाएं क्योंकि बाबा की आज्ञा से ही कोई मेंहदीपुर में आ तथा जा सकता है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी मंदिर के देवताओं के पद तथा उनका भोग
तिरुपति बालाजी मंदिर
भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर जो आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है, वास्तव में भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर है। इसे तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है। तिरुपति भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक है और इसका उल्लेख कई प्राचीन वेदों और पुराणों में मिलता है। यह मंदिर विष्णु के एक रूप वेंकटेश्वर को समर्पित है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे कलियुग के परीक्षणों और परेशानियों से मानव जाति को बचाने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। इसलिए इस स्थान को कलियुग वैकुण्ठ नाम भी मिला है और यहाँ के भगवान को कलियुग प्रत्यक्ष दैवम कहा जाता है। मंदिर को तिरुमाला मंदिर, तिरुपति मंदिर और तिरुपति बालाजी मंदिर जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। वेंकटेश्वर को कई अन्य नामों से जाना जाता है: बालाजी, गोविंदा और श्रीनिवास आदि । कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं।
‘ओम नमो वेंकटेशय’ का निरंतर जप, उत्साही तीर्थयात्रियों की भीड़ और भगवान वेंकटेश्वर की 8 फीट ऊंची मूर्ति – श्री वेंकटेश्वर मंदिर, सभी इस मंदिर को अलौकिक स्वरूप प्रदान करती हैं। 26 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस मंदिर में प्रतिदिन लगभग 50,000 तीर्थयात्री आते हैं, इस मंदिर को आमतौर पर सात पहाड़ियों के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु अवतार ही है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था। यह सरोवर तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं ‘सप्तगिरि’ कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ कर गये थे। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।
श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है। यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वैंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर साक्षत विराजमान है। यह मुख्य मंदिर के प्रांगण में है। मंदिर परिसर में अति सुंदरता से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं। मंदिर परिसर में मुख्श् दर्शनीय स्थल हैं:पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि।
कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। हालांकि दर्शन करने वाले भक्तों के लिए यहां विभिन्न जगहों तथा बैंकों से एक विशेष पर्ची कटती है। इसी पर्ची के माध्यम से आप यहां भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन कर सकते है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी मंदिर में क्या अंतर है
इस प्रकार हम देखते हैं कि मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी दोनों ही अलग अलग मंदिर हैं और अलग अलग देवताओं को समर्पित हैं। ये दोनों मंदिर भारत के अलग अलग राज्यों में स्थित हैं। ये दोनों ही मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध हैं और ऐसी मान्यता है यहाँ दर्शन मात्र से भक्तों के काम बन जाते हैं।