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साम्यवाद और पूंजीवाद में क्या अंतर है

Politics4 years ago



इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज के ताने बाने पर काफी प्रभाव पड़ा। एक तरफ तेजी से शहरीकरण हुआ वहीँ दूसरी ओर गांव से भारी संख्या में लोगों का शहरों की तरफ पलायन हुआ। कल कारखानों की वजह से समाज दो वर्गों में विभक्त हो गया एक पूंजीपति वर्ग जिनके पास अथाह पैसा था तो दूसरा मजदुर वर्ग जो दस बारह घंटे काम करने के बावजूद किसी तरह से अपनी जीविका चला पाते थे। समाज के इस अंतर ने जनता के अंदर काफी असंतोष भर दिया और इसका नतीजा हुआ साम्यवाद का जन्म। लोगों ने ऐसे व्यवस्था का अविष्कार किया जिसमे सभी लोग बराबर हों और कोई किसी का शोषण शोषण न कर सके। आज के इस पोस्ट के माध्यम से देखेंगे कि साम्यवाद क्या है इसके साथ ही पूंजी वाद किसे कहते हैं और दोनों में क्या क्या अंतर है ?


साम्यवाद किसे कहते हैं 

साम्यवाद एक विचारधारा है जिसमे समाज में समानता की कल्पना की गयी है। एक ऐसा समाज जहाँ न तो कोई अमीर हो न गरीब, न शोषक हो न शोषित जहाँ कोई न्याय से वंचित है नहीं होगा और एकमात्र जाति मानवता होगी। समाज में श्रम की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ होगी और तकनीक का स्तर सर्वोच्च होगा। कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित तथा साम्यवादी घोषणा पत्र में वर्णित साम्यवाद वास्तव में समाजवाद की चरम स्थिति है जिसमे राज्य के अस्तित्व को नकारा गया है और एक ऐसे समाज की कल्पना की गयी है जिसमे संरचनात्मक और समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना पर बल दिया गया है। इसमें भूमि तथा उत्पादन के सभी संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार होगा अर्थात सभी संसाधनों पर जनता का हक होगा। साम्यवाद में निजी संपत्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता। इस विचारधारा में व्यक्ति को उसकी क्षमतानुसार और आवश्यकतानुसार का सिद्धांत लागू होता है अर्थात व्यक्ति को वेतन उसकी आवश्यकतानुसार देने की अनुशंसा की जाती है। उत्पादन के सभी साधनों पर किसी व्यक्ति विशेष का हक़ नहीं होता है। इस वजह से कोई प्रतिस्पर्धा भी नहीं होती। 
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साम्यवाद विचार का जन्म औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप सामाजिक तानेबाने में परिवर्तन के फलस्वरूप हुआ। तेजी से बढ़ते उद्योग धंधों ने जहाँ रोजगार के असंख्य अवसर पैदा किये वहीँ समाज में दो वर्गों को भी जन्म दिया। एक वर्ग अमीर था जिनके पास बहुत सारे पैसे थे और वे फैक्टरियों के मालिक थे वहीँ दूसरी ओर मजदुर वर्ग था। अमीरों और गरीबों में बीच खाई बढ़ती ही जा रही थी। कारखानों के मालिकों द्वारा गरीब मजदूरों का खूब शोषण होता था। इन्ही परिस्थितियों ने रूस की 1917 की क्रांति को जन्म दिया और साम्यवाद का अस्तित्व सामने आया।
पूर्ण साम्यवाद एक आदर्श स्थिति होती है। यह प्रायः वास्तविक नहीं हो सकती अतः कई देशों में समाजवाद को ही साम्यवाद के रूप में अपनाया गया है जहाँ सारी जमीनों और उत्पादन के संसाधनों पर राज्य का अधिकार होता है।

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पूंजीवाद क्या है 

साम्यवाद के ठीक विपरीत पूंजीवाद एक प्रतिस्पर्धात्मक व्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। इस व्यवस्था में व्यक्तिगत समानता पर जोर न देकर अपनी क्षमता के हिसाब से एक प्रतिस्पर्धात्मक व्यवस्था होती है। यह एक आर्थिक पद्धति है जिसमे पूंजी और उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत नियंत्रण, औद्योगिक पर्तिस्पर्धा, क्षमतानुसार आगे बढ़ने की संभावना आदि की व्यवस्था रहती है।



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पूंजीवाद में राज्य की अवधारणा रहती है किन्तु राज्य केवल शासन करने का ही उत्तरदायी होता है। इस व्यवस्था के तहत हर व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह उत्पादन करने को स्वतंत्र है और लाभ अर्जित करने के लिए किसी भी अनुबंध में प्रवेश करने के लिए स्वतंत्र है।




पूंजीवाद एक मुक्त बाजार प्रणाली है जहाँ हर कोई खरीद सकता है और हर कोई बेच सकता है। इस वजह से इस प्रणाली में क्षमतावान और परिश्रमी लोगों को उनकी मेहनत और प्रतिभा का सदैव पारितोषिक मिलता है और वे अपनी लगन और श्रम की वजह से अपनी निजी सम्पति बना सकते हैं।
पूंजीवाद में स्पर्धा होने की वजह से तकनीक का विकास होता है और उपभोक्ताओं का शोषण नहीं हो पाता। उन्हें बेहतर सामान उचित मूल्य पर प्राप्त होता है। 


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साम्यवाद और पूंजीवाद में क्या अंतर है 


साम्यवाद और पूंजीवाद एक दूसरे के धूर विरोधी हैं। पूंजीवाद की बुराइयों को देखकर ही साम्यवाद का जन्म हुआ था। जहाँ साम्यवाद व्यक्तिगत समानता को लक्षित करता है वहीँ पूंजीवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देता है।

  • साम्यवाद एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमे हर व्यक्ति समान होता है। यह एक वर्गविहीन समाज होता है। उत्पादन के साधनों पर किसी व्यक्तिविशेष का अधिकार न होकर सामुदायिक नियंत्रण होता है। पूंजीवादी व्यवस्था में अमीरी गरीबी का भेद होता है। इस व्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत अधिकार होता है।


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  • साम्यवाद में निजी सम्पति का कोई अस्तित्व नहीं होता वहीँ पूंजीवाद में निजी सम्पति की कोई सीमा नहीं होती।

  • साम्यवाद में राज्य की अवधारणा नहीं होती वही समाजवाद में राज्य उत्पादन के सभी संसाधनों का स्वामी होता है जबकि पूंजीवाद में राज्य की अवधारणा होती है किन्तु राज्य व्यापार आदि विषयों से दूर रहते हैं।


  • साम्यवाद में बाजार में कोई प्रतियोगिता नहीं होती जबकि पूंजीवाद में प्रतियोगिता होती है जिसकी वजह से उपभोक्ता का शोषण नहीं हो पाता।


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  • साम्यवादी देशों में प्रायः एकदलीय शासन व्यवस्था होती है जबकि पूंजीवादी देशों में द्विदलीय या बहुदलीय शासन व्यवस्था होती है।
  • साम्यवादी शासन में लोकतंत्र का कोई अस्तित्व नहीं होता जबकि पूंजीवादी शासन में प्रायः लोकतंत्र शासन व्यवस्था होती है।

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  • साम्यवाद में आवश्यकतानुसार वेतन दिया जाता है जबकि पूंजीवादी व्यवस्था में क्षमतानुसार वेतन दिया जाता है।
  • साम्यवादी व्यवस्था में किसी भी व्यक्ति को शासन की आलोचना का अधिकार नहीं होता जबकि पूंजीवादी देशों में सभी को आलोचना के लिए स्वतंत्रता होती है।


  • साम्यवादी व्यवस्था में मुक्त व्यापार का कोई अस्तित्व नहीं होता है वहीँ पूंजीवादी व्यवस्था मुक्त व्यापार पर आधारित है। किसी उत्पादन पर किसी का एकाधिकार नहीं होता।

साम्यवाद और पूंजीवाद दोनों व्यवस्थाओं में बहुत कुछ अच्छाइयां हैं तो कई कमियां भी हैं। जहाँ साम्यवाद में स्पर्धा और व्यक्तिगत लाभ नहीं होने की वजह से लोगों में अंदर उत्कृष्टता और तरक्की करने के चाहत का आभाव पाया जाता है वहीँ पूंजीवाद में मुनाफाखोरी की प्रवृति शोषण की स्थिति पैदा करती है।

4 Comments

(Hide Comments)
  • Unknown

    April 23, 2021 / at 4:18 amsvgReply

    Bhut badiya explain kiya h
    thank you

  • बेनामी

    May 19, 2022 / at 5:26 pmsvgReply

    Thnx bhut achha explain krte ho app

    Phli bar smj aaya hai. M to khta or esi superb post dale taki hmri study easy ho ske.

  • akhileshforyou

    May 20, 2022 / at 11:16 amsvgReply

    Thanks for your valuable feedback

  • बेनामी

    June 5, 2022 / at 12:49 amsvgReply

    शानदार लाजवाब पोस्ट है

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