आँखे हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। ये हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियों में से एक है। ये हमें रंग बिरंगे संसार से परिचय कराती हैं। इसी की वजह से हम अपने दैनिक जीवन को आसानी से व्यतीत कर पाते हैं बड़ी ही सहुलियत से हम कही आ जा पाते हैं।
शरीर के अन्य अंगों की तरह हमारी आँखों में भी कई बार दोष आ जाते हैं और वे समुचित ढंग से काम नहीं कर पाती। ऐसे में वह व्यक्ति चीज़ों को स्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसी स्थिति आँख के लेंस और नेत्र गोलक के संतुलन या सामंजस्य में परिवर्तन आने की वजह से होता है जिसमे वस्तुओं के प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनके उसके पहले या पीछे बनता है। इस तरह की स्थिति प्रायः उम्र बढ़ने के साथ, कंप्यूटर पर या महीन काम घंटों तक करने से या डायबिटीज आदि की वजह से होती है।
मायोपिया या निकट दृष्टिदोष आँखों की एक सामान्य बीमारी है जिसमे मरीज को नजदीक की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखायी देती हैं किन्तु वह दूर की वस्तुएं स्पष्ट नहीं दिखायी पड़ती हैं।
निकट-दृष्टि दोष या निकट-दर्शिता दोष से ग्रसित व्यक्ति को कुछ मीटर निकट रखी वस्तुएँ स्पष्ट दिखती हैं किन्तु दूर की वस्तुएँ अस्पष्ट या धुँधली दिखाई देती। आँखों में यह दोष उत्पन्न होने का कारण प्रकाश की समान्तर किरणपुंज नेत्र लेंस द्वारा अपवर्तन के बाद रेटिना पर न बनाकर उसके सामने ही प्रतिबिम्ब बना देना है। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर-बिन्दु अनंत पर न होकर नेत्र के निकट आ जाता है।
निकट दृष्टि दोष होने पर दूर की वस्तुएं धुंधली या अस्पष्ट दिखती हैं किन्तु निकट की वस्तुएं स्पष्ट नज़र आती हैं। इसके अतिरिक्त व्यक्ति के सर में दर्द तथा आँखों में तनाव महसूस होता है।
निकट दृष्टि दोष के कारण
निकट दृष्टि दोष आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन माना जा सकता है जिसमे नेत्र लेंस और नेत्र गोलक का समायोजन असंतुलित हो जाता है जिससे वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनके उसके पूर्व ही बन जाता है।
निकट दृष्टि दोष के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं :
निकट दृष्टि दोष में अनंत पर रखी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना से पहले ही बन जाता है। अतः यदि आपतित समांतर किरणों को नेत्र लेंस पर पड़ने से पहले कुछ अपसरित कर दिया जाए तो प्रतिबिंब लेंस से कुछ दूर हट कर रेटिना पर बन सकता है। अतः निकट दृष्टि दोष के निवारण के लिए अवतल लेंस से बने चश्मे का प्रयोग किया जाता है। निकट दृष्टि दोष हो जाने पर नेत्र चिकित्सक उचित जांच कर रोगी को आवश्यक अवतल लेंस का चुनाव करता है और उससे बने चश्मे को लगाने की सलाह देता है।
वह दोष जिसमें मनुष्य को दूर की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं, परंतु निकट स्थित वस्तुएं स्पष्ट नहीं दिखाई देती है दूर दृष्टि दोष (hypermetropia) कहलाता हैं। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में इसे हाइपरमेट्रोपिया कहते हैं।
इस दोष से पीड़ित व्यक्ति को दूर की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखाई देती है परंतु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। ऐसा इस वजह से होता है क्योकि निकट स्थित वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना पर न बनकर रेटिना के पीछे बनता है| प्रतिबिंब रेटिना पर न बनने के कारण वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है|
ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति को, उसके निकट-बिंदु 25 cm से दूर हटने के कारण, आराम से पठन सामग्री को पढ़ने के लिए 25 cm से दूरी पर रखना पड़ता है।
दूर दृष्टि दोष में उम्र एक महत्वपूर्ण कारक होता है। प्रायः चालीस वर्ष के बाद के लोगों में यह पाया जाता है। महीन काम करने, कंप्यूटर पर ज्यादा समय देने तथा ज्यादा पढ़ाई करने वालों को भी यह रोग होने की सम्भावना होती है। इसके अतिरिक्त डायबिटीज भी इस रोग का एक महत्वपूर्ण कारक है।
दूर दृष्टि दोष दो कारणों से हो सकते है
दूर दृष्टि दोष के निवारण के लिए उत्तल लेंस से बने चश्मे प्रयोग किए जाते हैं। उत्तल लेंस सामान्य निकट बिंदु पर स्थित वस्तु से आने वाली किरणों को कुछ अभिसरित कर देता है जिससे नेत्र लेंस द्वारा बना अंतिम प्रतिबिंब लेंस की ओर आकर रेटीना पर बनने लगता है।
निकट दृष्टि दोष एवं दूर दृष्टि दोष दोनों ही प्रकार के दोषों में नेत्र की देखने सम्बंधी क्षमता प्रभावित या अवरोधित होती है। निकट दृष्टि दोष में दूर की वस्तुएं जबकि दूर दृष्टि दोष में निकट की वस्तुएं स्पष्ट देखने में परेशानी होती है। ऐसा नेत्र लेंस या नेत्र गोलक के आकार में परिवर्तन की वजह से होता है जिससे वस्तुओं के प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बन के उसके पीछे या आगे बनता है। इन दोषों को आवश्यकतानुसार अवतल या उत्तल लेंस के बने चश्मे का प्रयोग करके किया जा सकता है।