पानीपूरी की चर्चा हो और मुंह में पानी न आवे ऐसा संभव नहीं। पानीपूरी कमोवेश पुरे भारत में लोकप्रिय एक ऐसा व्यंजन है जिसके सभी दीवाने हैं। लड़कियों में तो इसकी खासी डिमांड रहती है। दो चार फुलकी अंदर और आपका दिमाग एकदम रिफ्रेश हो जाता है। इसका क्रिस्पी होना, खट्टा और तीखा होना इसकी यूएसपी होती है।
पानीपूरी एक हल्का स्नैक है जिसकी डिमांड शाम को सबसे ज्यादा रहती है। यह भारत के अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग नामों से जानी जाती है। जहाँ बंगाल, झारखण्ड आदि में इसे फुचका के नाम से जाना जाता है वहीँ बिहार उड़ीसा आदि में इसे गुपचुप कहा जाता है। पूर्वी उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश के कुछ भागों में इसे फुलकी भी कहा जाता है। पश्चिम उत्तर प्रदेश राजस्थान आदि क्षेत्रों में इसका नाम गोलगप्पा है।
गोलगप्पे का इतिहास
गोलगप्पे के अविष्कार के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्ही में से एक कथा महाभारत से निकली है। एक बार कुंती ने द्रौपदी को एकदम थोड़ा सा आटा और कई प्रकार की सब्जी देकर कहा, इससे कुछ ऐसा बनाओ जिसे पांचों पांडव खा सके। चूँकि आटा बहुत थोड़ा था उससे सबको रोटी बनाकर नहीं दिया जा सकता था अतः द्रौपदी ने एक नयी चीज़ पकाया। द्रौपदी ने आटे से एकदम छोटी छोटी पूड़ियाँ बनाया और उसमे छेदकर सब्ज़ी भर दिया। इस व्यंजन को उसने सबको परोस दिया। इस नए व्यंजन को सबने खूब पसंद किया। और कहते हैं कि तभी से गोलगप्पे की शुरुवात हुई। गोलगप्पे के पीछे एक और कहानी कही जाती है।
एक बार बनारस में एक वैद ने हाज़मा सही करने के लिए एक पेय बनाया जो खट्टा,मीठा और तीखा भी था। लोगों ने इसे पूड़ी में भर भरकर खाना शुरू कर दिया और तब से इसका प्रचलन शुरू हो गया। कई जगह गोलगप्पों का इतिहास मगध से जोड़ा जाता है। उस समय इसे फुलकीस कहा जाता था किन्तु आज के गोलगप्पे और फुलकीस एक ही हो यह कहा नहीं जा सकता क्योंकि गोलगप्पों में पड़ने वाला आलू हमारे देश में पुर्तगालियों के साथ आयी और गोलगप्पों को तीखा बनाने वाली लाल मिर्च भी भारत में बहुत पुरानी नहीं थी। मिथकों को अगर हम किनारे रखे तो भी गोलगप्पों का सबसे पहले जिक्र 1951 मिलता है जबकि पानीपूरी शब्द सबसे पहले 1955 में प्रयोग में आया।
गोलगप्पे की किस्में
गोलगप्पे की भारत में कम से कम बीस किस्मे प्रचलन में हैं साथ ही इसे कई नामों से जाना जाता है। गोल गोल पूड़ियों को गप्प से खाने से गोलगप्पा नाम पड़ा होगा ऐसा प्रतीत होता है वहीँ मुंह में जाकर फचाक की आवाज से शायद इसे लोग फुचका कहने लगे होंगे। पानी से भरी पूड़ी की वजह से कंही इसे पानीपूरी तो फूली हुई होने के कारण फुलकी भी कहा जाने लगा होगा। गुप् से मुंह में रखकर चुपचाप खाने की वजह से शायद इसे गुपचुप भी कहा गया।
जहाँ तक कैलोरी की बात करें तो चार फुचके में एक रोटी के बराबर कैलोरी ऊर्जा मिलती है। नमक से परहेज करने वाले लोगों को इसे कम ही खाना चाहिए।
गोलगप्पे के अलग अलग नाम
भारत के अलग अलग हिस्से में इसके अलग अलग नाम हैं। इसके साथ ही इसमें फीलिंग और स्वाद भी जगह जगह बदलते रहते हैं। कई जगह गोलगप्पे गोल न होकर लम्बे होते हैं। उत्तर भारत में इसे गोलगप्पा कहा जाता है। इसमें तीखी मीठी चटनी इमली का पानी प्रयोग किया जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, साऊथ इंडिया में इस डिश का नाम पानीपूरी है। इन क्षेत्रों में यह काफी लोकप्रिय शाम का नाश्ता है। हरियाणा में इसे पानी के बताशे कहा जाता है। तो गुजरात के कुछ हिस्सों में इसे पकौड़ी भी कहा जाता है। यहाँ इसमें प्याज और सेव भरा जाता है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे पताशी भी बोला जाता है। गोलगप्पे का एक और भी बड़ा लोकप्रिय नाम है यह है फुचका। पश्चिम बंगाल, असम, झारखण्ड आदि में इसे फुचका ही बोला जाता है। उड़ीसा, छत्तीसगढ़, बिहार आदि क्षेत्रों में इसका नाम गुपचुप है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, गुजरात के कुछ भागों में इसे फुलकी भी बोला जाता है। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में गोलगप्पे का नाम टिक्की हो जाता है।
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खिचड़ी और तहरी में क्या अंतर है
पानी पूरी और फूचका में क्या अंतर है
- हालाँकि पानीपुरी और फुचका में कोई खास फर्क नहीं है किन्तु महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे पानीपूरी कहा जाता है जबकि बंगाल, उड़ीसा, झारखण्ड आदि क्षेत्रों में इसे फुचका कहा जाता है।
- पानीपूरी में फीलिंग के लिए सफ़ेद मटर का प्रयोग किया जाता है वहीँ फुचका में फीलिंग के लिए आलू का चोखा और मटर अनिवार्य है।
- पानीपूरी में अंदर जो पानी भरा जाता है उसका स्वाद तीखा, मीठा और खट्टा होता है वहीँ फुचका में प्रयोग होने वाला पानी प्रायः तीखा होता है।
- पानीपूरी साइज के मामले में बड़े बड़े होते हैं किन्तु फुचका का साइज अपेक्षाकृत ज्यादा बड़ा और ज्यादा ब्राउन होता है।
- पानीपूरी की स्टफिंग में तीखे का प्रयोग अलग से प्रायः नहीं होता है जबकि फुचका में प्रायः अलग से तीखे का प्रयोग होता है।
पानी पूरी, गोलगप्पे या फुचके में स्टफिंग के आधार पर कई एक्सपेरिमेंट किये जाते रहे हैं और नए नए फ्लेवर अकसर सामने आते रहते हैं। कई बार तो इसमें पनीर, नॉन वेज , वाइन आदि का प्रयोग करके कुछ नया ही स्वाद लाने का प्रयास किया जाता है किन्तु जो मजा ठेले वाले के पास जाकर लाइन से एक एक करके इसे खाने का है और लास्ट में एक फ्री में खाने का है वह और कहीं नहीं आने वाला है।
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