अदालत की कार्यवाहियों में अकसर समन और वारंट का जिक्र आता है। समन और वारंट दोनों ही हमारे न्यायलय की प्रक्रिया हैं और जरुरत के हिसाब से कोर्ट इनका प्रयोग करती है। सामान्य बोलचाल की भाषा में कई बार लोग इन्हे एक ही समझ लेते हैं और दोनों को ही गिरफ़्तारी का आदेश मान लेते हैं। कई अन्य लोग जो दोनों को अलग अलग समझते हैं पर दोनों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं कर पाते। समन और वारंट दोनों ही न्यायलय द्वारा जारी आदेश पत्र होते हैं पर जहाँ समन बुलावा पत्र होता है वहीँ वारंट प्रायः गिरफ़्तारी का आदेश। आईये देखते हैं समन और वारंट में क्या अंतर है
समन किसे कहते हैं
अदालत में जब कोई पीड़ित मुकदमा दायर करता है तब कोर्ट मुक़दमे की सुनवाई के लिए प्रतिवादी को कोर्ट में उपस्थित होने के लिए एक लीगल नोटिस जारी करता है। इस लीगल नोटिस को समन कहा जाता है। समन मुक़दमे से जुड़े हर उस व्यक्ति को भेजा जा सकता है जो उस मुक़दमे से सम्बंधित है। इसमें प्रतिवादी, गवाह या जिनके पास सबूत या कोई जानकारी या दस्तावेज हो शामिल हो सकते हैं। समन हमेशा दो प्रतियों में होता है। समन उस व्यक्ति को सम्बोधित करके जारी किया जाता है और उसको अदालत में एक निश्चित तिथि को उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है। समन में जारी करने वाले न्यायिक अधिकारी की साइन और मुहर लगी रहती है। समन प्रायः रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजा जाता है जिसमे एक एक्नॉलेजमेंट लगा रहता है जिसे पाने वाले को हस्ताक्षर करके लौटाना होता है। कभी कभी समन कोर्ट के कर्मचारी के द्वारा व्यक्तिगत रूप से भेजा जाता है। कई बार समन पत्र को सम्बन्धित व्यक्ति के घर पर चिपका दिया जाता है। ऐसा उस स्थिति में किया जाता है जब सम्बंधित व्यक्ति घर पर न हो और घर में ताला बंद रहता है।
समन पाने वाले व्यक्ति को समन में दी गयी तिथि को अदालत के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य माना जाता है। समन का उलंघन करने पर उस व्यक्ति के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा सकती है और उसकी गिरफ़्तारी के लिए वारंट भी जारी किया जा सकता है।
समन जारी किये जाने वाली तिथि से कोर्ट में उपस्थित होने वाली तिथि तक वैध होती है। इस अवधि के बाद यह अमान्य हो जाती है। अतः इसे जिन व्यक्तियों को जारी किया गया है उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे उक्त तिथि को अदालत में स्वयं को प्रस्तुत करें अन्यथा तिथि बितने के बाद कोर्ट अपना अगला कदम उठाने को बाध्य होगी।
वारंट क्या है
समन की अवेहलना करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के खिलाफ अदालत उनकी गिरफ़्तारी के लिए सम्बंधित पुलिस अधिकारी को एक आदेश जारी करती है। इस आदेश पत्र को वारंट कहा जाता है। कई बार वारंट गिरफ़्तारी के अलावा किसी के घर की तलाशी के लिए भी जारी किया जाता है। यह माना जाता है कि हर व्यक्ति के कुछ मूल अधिकार होते हैं और पुलिस बिना किसी कानूनी आदेश के किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती। अतः किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए, उसके घर की तलाशी लेने के लिए, जब्त करने के लिए या कई अन्य कार्यवाही करने के लिए न्यायिक अधिकारी द्वारा किसी पुलिस अधिकारी को जारी किया जाने वाला कानूनी आदेश वारंट कहलाता है।
वारंट में सम्बंधित पुलिस अधिकारी का नाम, गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति का नाम या अन्य कार्यवाही का वर्णन दिया हुआ रहता है। इसके नीचे जारी करने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर, पद और कोर्ट की मुहर रहती है। वारंट हमेशा अदालत के पीठासीन अधिकारी की तरफ से जारी किया जाता है। वारंट हमेशा एक प्रति में होता है और उस अधिकारी को सम्बोधित होता है जिसे उसकी जिम्मेदारी दी गयी हो। वारंट जमानती और गैरजमानती दोनों तरह का हो सकता है।
समन और वारंट में क्या अंतर है
- समन एक क़ानूनी बुलावा पत्र होता है जो किसी गवाह, प्रतिवादी या किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके पास सबूत हो उसको बुलाने के लिए कोर्ट से न्यायिक अधिकारी के द्वारा जारी किया जाता है। दूसरी तरफ वारंट कोर्ट के द्वारा किसी पुलिस अधिकारी को जारी किया गया अधिकार पत्र है जो किसी व्यक्ति की तलाशी या गिरफ़्तारी के लिए जारी की जाती है।
- समन का प्रावधान दंड संहिता 61 में किया गया है जबकि वारंट का प्रावधान दंड संहिता के धारा 70 में किया गया है।
- समन को प्रायः रजिस्टर्ड डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से समन किये गए व्यक्ति के पास पंहुचाया जाता है वहीँ वारंट हमेशा कोई पुलिस अधिकारी लेकर जाता है।
- समन में गवाह या प्रतिवादी को अदालत के समक्ष किसी दस्तावेज या किसी बात को प्रस्तुत करने का निर्देश रहता है वहीँ वारंट में पुलिस अधिकारी को किसी अपराधी को पकड़ कर अदालत के समक्ष पेश करने का या उसके घर की तलाशी लेने का निर्देश होता है।
- समन हमेशा प्रतिवादी या गवाह को सम्बोधित होता है जबकि वारंट हमेशा सम्बंधित पुलिस अधिकारी को सम्बोधित करके जारी किया जाता है।
- समन का उद्द्येश्य अदालत में पेश होने के लिए कानूनी दायित्व के बारे में व्यक्ति को सूचित करना होता है वहीँ वारंट का उद्द्येश्य समन की अवहेलना करने वाले व्यक्तियों को अदालत में हाजिर करने का होता है
- समन हमेशा दो प्रतियों में होता है जिसमे जारी करने वाले अधिकारी की साइन और मुहर होती है। वारंट हमेशा एक प्रति में होता है इसमें भी जारी करने वाले अधिकारी की साइन और कोर्ट की मुहर होती है।
- समन जारी किये जाने की तिथि से कोर्ट में उपस्थित होने की तिथि तक मान्य होती है उसके बाद यह निष्प्रभावी हो जाती है। दूसरी तरफ वारंट जारी होने की तिथि से कार्यवाही पूरी होने तक वैध रहती है अथवा तब तक प्रभावी रहती है जबतक कोर्ट स्वयं ही न इसे निरस्त कर दे।
- समन पत्र न्यायधीश के अलावा उच्च न्यायलय के आदेश पर अन्य अधिकारी भी हस्ताक्षर कर सकते हैं वहीँ वारंट पर केवल जारी करने वाले न्यायलय के पीठासीन अधिकारी की साइन होती है।
- समन किसी पुलिस अधिकारी या किसी राज्य सरकार के आदेश पर कोई अन्य अधिकारी के द्वारा भेजा जा सकता है या इसे डाक द्वारा भी भेजा जा सकता है वहीँ वारंट हमेशा किसी पुलिस अधिकारी के द्वारा ही कार्यान्वित किया जा सकता है विशेष परिस्थिति में ही न्यायलय के आदेश पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इस कार्रवाई को किया जा सकता है।
- समन में जमानत या गिरफ़्तारी का कोई स्थान नहीं होता जबकि वारंट में जमानती और गैर जमानती की स्थितियां हो सकती हैं जिसमे गिरफ़्तारी अनिवार्य होती है।
समन और वारंट एक जैसे होते हुए भी इनमे काफी फर्क है। वैसे दोनों ही अदालती आदेश हैं और किसी मुक़दमे की अलग अलग प्रक्रिया हैं। सामान्यतः समन के बाद ही वारंट की आवश्यकता पड़ती है।
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