केदारनाथ और बद्रीनाथ में क्या अंतर है
केदारनाथ और बद्रीनाथ भारत में हिन्दुओं के सबसे पवित्र स्थानों में अपना स्थान रखते हैं। हर हिन्दू की आस्था और इच्छा रहती है इन दोनों तीर्थ स्थानों का अपने जीवन में कम से कम एक बार दर्शन अवश्य करें। दोनों ही मंदिर उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र के दुर्गम इलाकों में स्थित हैं। प्रतिकूल जलवायु के कारण दोनों ही मंदिरों के कपाट को हर वर्ष लगभग छह महीने के लिए बंद करना पड़ता है। आज के इस पोस्ट में हम इन दोनों मंदिरों के इतिहास, स्थापना, स्थिति के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ जानेंगे। इसके साथ हीं इन दोनों ही मंदिरों के बीच क्या अंतर है उसे जानने का प्रयास करेंगे।
केदारनाथ मंदिर
केदारनाथ मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। यह एक शिव मंदिर है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसकी गणना हिन्दुओं के चार धामों और पंचकेदार में होती है। यह तीन विशाल पर्वतों से घिरा और मंदाकनी नदी के किनारे स्थित एक अत्यंत सुन्दर और मनमोहक स्थान है।
केदारनाथ मंदिर की स्थापना की पौराणिक कथाएं
केदारनाथ भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसकी स्थापना के विषय में कई मत हैं। किवदंतियों पर विश्वास करें तो इसका निर्माण पांडवों के वंशज जन्मेजय के द्वारा कराया गया था। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के उपरांत पांडव भातृहत्या के पाप मुक्त होने के लिए शिव जी की तपस्या करने इस स्थान पर आये थे। शिव पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे। अतः वे एक बैल का रूप धारण करके वहीँ छिप गए। आखिरकार पांडवों ने उन्हें ढूढ़ लिया और उनकी आराधना की। अंततः शिव प्रसन्न हुए और उन्हें क्षमा किये। हालाँकि एक और कथा के अनुसार भगवान शिव नर और नारायण की तपस्या और आग्रह पर यहाँ पर निवास करने लगे। केदारनाथ का पहला वर्णन संभवतः स्कंदपुराण में मिलता है जहाँ गंगा के धरती पर शिव द्वारा मुक्त किये जाने का वर्णन है।
केदारनाथ में भगवान् शिव पांडवों से बचने के लिए बैल के रूप में होकर धरती में छिप गए थे। इसके बाद जब वे प्रकट हुए तो ऐसा माना जाता है कि उनका मस्तष्क काठमांडू में प्रकट हुआ। इस जगह पर पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदयेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। इसी वजह से इन पाँचों स्थानों को पंचकेदार कहा जाता है।
केदारनाथ मंदिर की स्थापना कब हुई
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12 वीं और 13 वीं शताब्दी का है। अन्य स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य के द्वारा 8 वीं शताब्दी में की गयी थी जो पांडवों के द्वारा बनवाये गए पहले मंदिर के बगल में है। इतिहासकार डा शिव प्रसाद डबराल के अनुसार शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से केदारनाथ जाते रहे हैं। राजा भोज की ग्वालियर से मिली भोज स्तुति के अनुसार यह राजा भोज के द्वारा उनके शासन काल 1076-99 के बीच बनवाया गया।
केदारनाथ मंदिर कहाँ स्थित है
केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ करीब 3562 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह उत्तराखंड के चार धामों में से एक है जिसमे अन्य तीन धाम क्रमशः बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री हैं। केदारनाथ मंदिर ऋषिकेश से 223 किलोमीटर पर गंगा की एक सहायक नदी मन्दाकिनी के किनारे स्थित है। यहाँ पंहुचने के लिए गौरी कुंड से 15 किलोमीटर पैदल, टट्टू या मंचन से यात्रा करनी पड़ती है। यह तीन पर्वतों से घिरा हुआ है जिनकी ऊंचाई 21000 फ़ीट के आस पास है।
केदारनाथ मंदिर की निर्माण शैली
यह मंदिर एक छह फ़ीट ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर के मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर एक प्रदिक्षणा पथ है। मंदिर के ठीक सामने नंदी बैल की मूर्ति बनी हुई है। इस मंदिर के निर्माण में भूरे कटवां पत्थरों का प्रयोग हुआ है। इन्हे आपस में जोड़ कर इसका निर्माण किया गया है। इसकी विशालकाय छत एक ही चट्टान की बनी हुई है। मंदिर 85 फ़ीट ऊँचा, 187 फ़ीट लम्बा और 80 फ़ीट चौड़ा है। इसकी दीवारों की मोटाई 12 फ़ीट है। मंदिर का निर्माण कात्युहरी शैली में किया गया है। मंदिर के तीन मुख्य भाग हैं गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप। मंदिर के अग्रभाग की छत लकड़ी की बनी हुई है।
केदारनाथ मंदिर में किसकी पूजा होती है
केदार नाथ मंदिर में शिव के अलावा ऋद्धि सिद्धि, भगवान् गणेश, पार्वती, विष्णु, लक्ष्मी, कृष्ण, कुंती, पांचों पांडव, द्रौपदी आदि की भी पूजा अर्चना की जाती है। अत्यंत दुर्गम स्थान पर स्थित होने की वजह से इस मंदिर के कपाट को साल के कुछ महीने बंद रखना पड़ता है। इसके कपाट को दीपावली के दूसरे दिन बंद कर दिया जाता है। शीट ऋतू के बाद पुनः इसे अप्रैल में अक्षय तृतीया के दिन खोला जाता है। कपाट बंद होने की अवधि में विग्रह और दंडी को ससम्मान नीचे उखीमठ ले जाया जाता है और वहीँ उनकी पूजा अर्चना होती है।
केदारनाथ मंदिर पर मौसम का दुष्प्रभाव
केदारनाथ मंदिर पर हमेशा मौसम और जलवायु का असर रहा है। हालांकि मौसम और जलवायु का कोई प्रतिकूल प्रभाव इस मंदिर पर अभी तक देखने को नहीं मिला। कहा जाता है कि यह मंदिर एक लघु हिमयुग का दौर भी देख चूका है। 14 वीं शताब्दी के मध्य से लेकर सन 1748 तक करीब 400 सालों तक यह मंदिर बर्फ के ग्लेशियर से ढका रहा था। आज भी इस मंदिर की दीवारों पर ग्लेशियर के घर्षण के निशान देखने को मिल जाते हैं। 2013 की बादल फटने की घटना ने भी पुरे केदारनाथ क्षेत्र को बुरी तरह से तहस नहस कर दिया था। हालाँकि इस विषम परिस्थिति में भी मंदिर सुरक्षित रहा था। अचानक से पहाड़ों से गिरी एक विशालकाय चट्टान जो मंदिर के ठीक पीछे गिरा था ने मंदिर को एक बड़े नुकसान से बचा लिया।
बद्रीनाथ मंदिर
बद्रीनाथ मंदिर जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है हिन्दुओं के प्रसिद्ध चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ में हिन्दुओं के देवता विष्णु के एक रूप बद्रीनारायण की पूजा होती है। बद्रीनाथ एक अत्यंत ही प्राचीन मंदिर है जो उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर नर और नारायण पर्वतों के मध्य स्थित है। मौसम और जलवायु को देखते हुए इस मंदिर को साल के छह महीनों तक बंद रखा जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर का महत्व
बद्रीनाथ एक विष्णु मंदिर है और यहाँ विष्णु के ही एक रूप बद्रीनारायण की पूजा और अर्चना होती है। इस मंदिर में विष्णु की शालिग्राम से बनी एक मूर्ति है जिसकी ऊंचाई करीब सवा तीन फ़ीट है। मान्यता है कि यह मूर्ति स्वम्भू है अर्थात स्वयं प्रकट हुई है। यह मंदिर पंचबद्री में से एक माना जाता है। इन पंचबद्री में बद्रीनाथ जिसे विशाल बद्री भी कहा जाता है के अलावा पांडुकेश्वर स्थित योगध्यान बद्री, सुबेन में अवस्थित भविष्य बद्री, अणीमठ का वृद्ध बद्री और रानीखेत रोड पर स्थित आदि बद्री आते हैं। इन मंदिरों के अतिरिक्त कल्पेश्वर में ध्यान बद्री और ज्योतिर्मठ तपोवन के समीप स्थित अर्ध बद्री को मिलकर संयुक्त रूप से सप्त बद्री बनाते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर के विभिन्न नाम
बद्रीनाथ क्षेत्र का नाम यहाँ पाए जाने वाले बद्री अर्थात बेर के घने वनों के कारण पड़ा है। एडविन टी एटकिंसन ने अपनी पुस्तक "द हिमालयन गजेटियर " में इस बात का उल्लेख किया है। हालाँकि अब यहाँ बद्री के पेड़ों का सर्वथा आभाव है। भिन्न भिन्न युगों में इस क्षेत्र को भिन्न भिन्न नामों से जाना गया है। स्कंदपुराण में इस क्षेत्र को "मुक्तिप्रदा", त्रेता युग में "योग सिद्ध" तथा द्वापर युग में इसे "मणिभद्र आश्रम या विशाला तीर्थ " कहा गया है।
बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना की पौराणिक कथाएं
बद्रीनाथ की स्थापना के विषय में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार भगवान् विष्णु एक बार इस स्थान पर घनघोर तपस्या कर रहे थे। चारों ओर और खुद विष्णु के ऊपर हिमपात हो रहा था। उनकी पत्नी लक्ष्मी से देखा न गया और उन्होंने बेर जिसे बद्री भी कहा जाता है के पेड़ का रूप धारण करके विष्णु को छाया प्रदान की और उन्हें हिम से बचाया। जब विष्णु की तपस्या समाप्त हुई तो उन्होंने बर्फ आच्छादित लक्ष्मी को बद्री पेड़ के रूप में देखा। विष्णु ने विह्वल होकर कहा हे देवी तुमने मेरी रक्षा करके मेरे बराबर ही तप की हो, आज से मुझे बद्री के नाथ यानि बद्रीनाथ के रूप में जाना जायेगा और मेरे साथ तुम्हारी भी यहाँ पूजा होगी। एक और कथा के अनुसार भगवान् विष्णु जब ध्यानयोग हेतू एक शांत स्थान ढूंढ़ रहे थे तो उन्हें अलकनंदा के समीप यह स्थान पसंद आ गया। यह स्थान शिव भूमि माना जाता था। भगवान् ने बाल रूप धारण करके क्रंदन करने लगे। माता पार्वती ने जब यह क्रंदन सुना तो उनका ममत्व जाग उठा और वे बालक को चुप कराने लगीं। इसपर बालक ने उनसे यह स्थान तपयोग के लिए मांग लिया। एक और कथा धर्म के दो पुत्र नर और नारायण के इस स्थान पर तपस्या से सम्बंधित है। उन दोनों ने अपने आश्रम की स्थापना के लिए अनेक स्थान पर भ्रमण किया जिनमे पांचों बद्री शामिल है। इनमे से उन्हें एक स्थान बहुत पसंद आया और वे इसका नाम विशाल बद्री रखे। माना जाता है कि व्यास जी ने महाभारत की रचना इसी स्थान पर की थी। साथ ही यह भी मान्यता है कि पांडवों ने इसी स्थान पर अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था।
प्राचीन साहित्यों में बद्रीनाथ
बद्रीनाथ का वर्णन प्राचीन साहित्यों में बार बार आता है। विष्णु पुराण, महाभारत, स्कन्द पुराण में इस धाम की चर्चा की गयी है। कई वैदिक ग्रंथों के अतिरिक्त पद्मपुराण में भी इस स्थान की चर्चा है। बाद के ग्रंथों में नालयिर दिव्य प्रबंध और संत पेरियालवार और तिरुमंगई की रचनाओं के कई स्तोत्र भी इसी मंदिर को समर्पित हैं।
बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना
वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना किसने की थी यह स्पष्ट नहीं है। मंदिर की वास्तुकला इसे किसी बौद्ध मंदिर होने का इशारा करती है। कई अन्य लोग मानते हैं कि इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य ने नौवीं शताब्दी में की थी। शंकराचार्य छह वर्षों तक इस स्थान पर निवास किये थे। उन्होंने इसके पास के गर्मजल कुंड से इस मूर्ति की खोज की और इसे स्थापित किया। इसी तरह की एक और घटना में रामानुजाचार्य के द्वारा भी मूर्ति की स्थापना का जिक्र आता है।
बद्रीनाथ मंदिर की भौगोलिक स्थिति
बद्रीनाथ मंदिर गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ नगर में स्थित है। इसे बद्रीनाथपुरी भी कहा जाता है। इस स्थान की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 3,133 मीटर है। यह अलकनंदा और ऋषिगंगा नदी के संगम पर स्थित है। मंदिर के ठीक सामने नर पर्वत, पीछे नीलकंठ शिखर के पीछे नारायण पर्वत स्थित है। इसके पश्चिम में 7138 मीटर ऊँचा बद्रीनाथ शिखर स्थित है। मंदिर के ठीक नीचे गर्म पानी का एक तप्तकुण्ड है। मंदिर में दो तालाब नारद कुंड और सूर्यकुंड भी हैं।
बद्रीनाथ मंदिर की स्थापत्य शैली
बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के सामने स्थित है जिसमे मंदिर का मुख्यद्वार नदी की तरफ है। मंदिर को तीन स्पष्ट भागों में बांटा जा सकता है गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप। गर्भगृह सबसे अंदर का भाग है। इसी में बद्रीनारायण की प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह की छत शंक्वाकार है और लगभग 15 मीटर ऊँची है। इसी छत के सबसे ऊपर सोने के पानी चढ़ाया हुआ एक कपोला है। गर्भगृह के ठीक पहले दर्शन मंडप है और सबसे शुरू में सभा मंडप है। मंदिर का द्वार पत्थर से बना हुआ है। इसे सिंह द्वार कहा जाता है। इसमें धनुषाकार खिड़कियां हैं। मुख्यद्वार भी धनुषाकार है। इस द्वार के ऊपर तीन स्वर्ण कलश और छत पर एक विशाल घंटा लटका हुआ है। मंदिर की दीवारें तथा स्तम्भ खूबसूरत नक्काशी से सजी हुई हैं।
बद्रीनाथ मंदिर में किसकी पूजा होती है
बद्रीनाथ मंदिर में बद्रीनारायण की मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति शालिग्राम की है और लगभग एक मीटर ऊँची है। यह बद्री वृक्ष के नीचे सोने के चंदवा में रखी गयी है। माना जाता है यह मूर्ति विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों अर्थात स्वयं प्रकट मूर्तियों में से एक है। मूर्ति के ललाट पर एक हीरा जड़ा हुआ है। इसी गर्भगृह में कुबेर, नारद, उध्दव, नर, नारायण आदि की मूर्तियां हैं। मंदिर क्षेत्र में लक्ष्मी, गरुड़, नवदुर्गा समेत पंद्रह और मूर्तियों की पूजा की जाती है। इनके अतिरिक्त मंदिर क्षेत्र में लक्ष्मी नृसिंह, आदि शंकराचार्य, नर नारायण, वेदांत देशिक, रामानुजाचार्य, घंटाकर्ण आदि की भी मूर्तियां हैं।
बद्रीनाथ मंदिर हिन्दुओं के चारधाम में से एक माना जाता है साथ ही यह उत्तराखंड राज्य के छोटा चारधामों में से भी एक है। यह विष्णु के 108 दिव्य देशम में से भी एक है जो वैष्णव समुदाय का एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। प्रतिकूल मौसम की वजह से इस मंदिर को नवंबर से अप्रैल तक बंद रखा जाता है। बद्रीनाथ मंदिर में पारम्परिक रूप से पुजारी केरल के नम्बूदरी ब्राह्मण होते हैं जिन्हें रावल कहा जाता है।
केदारनाथ और बद्रीनाथ में क्या अंतर है
- केदारनाथ शिव का मंदिर है वहीँ बद्रीनाथ भगवान् विष्णु के एक रूप बद्रीनारायण का मंदिर है।
- केदारनाथ उत्तरांखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जबकि बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है।
- केदारनाथ शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है वहीँ बद्रीनाथ में भगवान् बद्री यानि विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों अर्थात स्वयं प्रकट मूर्तियों में से एक है।
- केदारनाथ मन्दाकिनी नदी के किनारे स्थित है जबकि बद्रीनाथ अलकनंदा नदी के एक ओर स्थित है।
- केदारनाथ मंदिर की समुद्रतल से ऊंचाई करीब 3562 मीटर है वहीँ बद्रीनाथ मंदिर क्षेत्र की ऊंचाई समुद्रतल से 3133 मीटर है।
- केदारनाथ मंदिर प्रसिद्ध पंचकेदार में से एक माना जाता है जबकि बद्रीनाथ मंदिर पंचबद्री का एक महत्वपूर्ण मंदिर है।
- केदारनाथ मंदिर की स्थापना आठवीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच के समय में हुई मानी जाती है वहीँ बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना नौवीं शताब्दी के आस पास की मानी जाती है।
- केदार नाथ मंदिर में शिव के अलावा ऋद्धि सिद्धि, भगवान् गणेश, पार्वती, विष्णु, लक्ष्मी, कृष्ण, कुंती, पांचों पांडव, द्रौपदी आदि की भी पूजा अर्चना की जाती है। वहीँ बद्रीनाथ मंदिर में भगवान् बद्री नारायण के अतिरिक्त लक्ष्मी, गरुड़, नवदुर्गा समेत पंद्रह और मूर्तियों की पूजा की जाती है।
- केदारनाथ मंदिर के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण होते हैं जबकि बद्रीनाथ मंदिर के पुजारी केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं।
- केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के चारधामों में से एक है जबकि बद्रीनाथ मंदिर भारत के चार धामों बद्रीनाथ,द्वारिका, जगनाथपुरी और रामेश्वरम के साथ साथ उत्तराखंड के चार धामों बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री में से भी एक है।
उपसंहार
केदारनाथ और बद्रीनाथ दोनों ही तीर्थ हिन्दुओं के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थों में से हैं। ये उनके आराध्य देव क्रमशः शिव और विष्णु को समर्पित मंदिर हैं जो हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में अवस्थित हैं। दोनों ही अति प्राचीन मंदिर हैं। ये दोनों ही उत्तराखंड के चारधामों में शामिल हैं। केदारनाथ जाने वाले सभी तीर्थयात्री बद्रीनाथ के दर्शन करने अवश्य जाते हैं। माना जाता है तभी उनकी तीर्थयात्रा सफल होती है।
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