हर भाषा की अपनी विशेषता और खूबसूरती होती है। इन विशेषताओं में एक विशेषता प्रचलित किसी शब्द से नए शब्द का सृजन भी है। यह प्रक्रिया जहाँ एक ओर नए नए शब्द की रचना करती है और भाषा को समृद्ध बनाती है वहीँ दूसरी ओर यह भाषा के प्रवाह को भी आगे बढ़ाती है। उपसर्ग और प्रत्यय इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं और भाषा के शब्द भंडार को न केवल समृद्ध करते हैं बल्कि भाषा की खूबसूरती को भी बढ़ाते हैं। हिंदी भाषा में बहुत सारे उपसर्ग और प्रत्यय प्रयोग किये जाते हैं जिनका विस्तार से अध्ययन हमारे भाषा कौशल के विकास में सहायक होगा।
हिंदी भाषा के व्याकरण के अध्ययन में उपसर्ग और प्रत्यय का महत्वपूर्ण स्थान है। अकसर लोग जानना चाहते हैं उपसर्ग क्या है, प्रत्यय किसे कहते हैं, उपसर्ग कितने प्रकार के होते हैं, प्रत्यय के प्रकार, उपसर्ग का प्रयोग, प्रयत्य कैसे प्रयोग में लाये जाते हैं साथ ही उपसर्ग और प्रत्यय के उदहारण और उपसर्ग और प्रत्यय में क्या अंतर है आदि। उपसर्ग और प्रत्यय के बारे में पूरी जानकारी के लिए कृपया इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें।
उपसर्ग
उपसर्ग क्या है/ उपसर्ग की परिभाषा
उपसर्ग के कार्य और विशेषताएं
उपसर्ग कितने प्रकार के होते हैं
उपसर्ग के प्रयोग
उपसर्ग क्या है (उपसर्ग किसे कहते हैं)
उपसर्ग दो शब्दों से बना हुआ है "उप" तथा "सर्ग" इन दोनों शब्दों का अर्थ देखा जाए तो इसमें उप का अर्थ समीप या पास तथा सर्ग का अर्थ सृष्टि करना होता है। उपसर्ग किसी शब्द के पास में लगकर एक नए शब्द का निर्माण करता है अर्थात वैसे शब्दांश जो किसी मूल शब्द में जुड़कर एक नए शब्द का निर्माण करते हैं उपसर्ग कहलाते हैं। उपसर्ग मूल शब्द के पहले यानि शुरू में लगते हैं और उस शब्द के अर्थ को प्रायः एकदम बदल देते हैं। उपसर्गों का स्वतंत्र रूप में कोई प्रयोग नहीं होता है किन्तु ये जिन शब्दों के साथ जुड़ते हैं उनके अर्थ को बदल देते हैं।
उपसर्ग की परिभाषा
उपसर्ग वह शब्दांश या अव्यय है जो किसी शब्द के आरम्भ में आकर उस शब्द के मूल अर्थ में नवीनता,परिवर्तन तथा विशेषता ला दे। उदहारण के लिए "हार" शब्द जिसका अर्थ पराजय या माला होता है में उप उपसर्ग लगकर "उपहार" और प्र उपसर्ग लग कर "प्रहार" शब्द का निर्माण करते हैं और दोनों अपने मूल शब्द से एकदम अलग अलग अर्थ रखते हैं।
उपसर्ग के कार्य या विशेषताएं
उपसर्ग के मुख्यतः निम्न कार्य होते हैं। इन्हें हम उपसर्ग की विशेषता भी कह सकते हैं।
- शब्द के अर्थ में नई विशेषता लाना
- शब्द के अर्थ को विपरीत बनाना
अ + सत्य = असत्य
अ + टल = अटल
- शब्द के अर्थ को प्रभावशाली और जोर प्रदान करना
- एक नए शब्द की रचना करना
प्र + हार = प्रहार
आ + हार = आहार
उपसर्ग कितने प्रकार के होते हैं
हिन्दी भाषा में मुख्यतः तीन प्रकार के उपसर्ग प्रयोग होते हैं
संस्कृत के उपसर्ग
हिन्दी के उपसर्ग
आगत उपसर्ग
संस्कृत भाषा से आये उपसर्ग :
संस्कृत भाषा के 22 उपसर्ग हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं। चूँकि ये उपसर्ग संस्कृत भाषा से आये हुए हैं अतः इन्हें संस्कृत के उपसर्ग कहा जाता है।
हिंदी के उपसर्ग :
आगत उपसर्ग : ऐसे उपसर्ग जो अन्य भाषाओँ से हिन्दी में आये हुए हैं उन्हें आगत उपसर्ग कहा जाता है। आगत उपसर्ग में सबसे ज्यादा अरबी, फारसी और उर्दू के हैं। इस तरह के उपसर्गों की संख्या 19 है।
इनके अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा से भी कई उपसर्गों का आगमन हिन्दी में हुआ है।
कभी कभी कुछ ऐसे शब्द प्रयोग किये जाते हैं जिनमे दो उपसर्ग का प्रयोग होता है। उदहारण के लिए
निर् + आ + करण = निराकरण
प्रति + उप + कार = प्रत्युपकार
सु + सम् + कृत = सुसंस्कृत
अन् + आ + हार = अनाहार
सम् + आ + चार = समाचार
सु+ आ+ गत = स्वागत
अन+ आ+ चार = अनाचार
सु+ प्र+ स्थान = सुप्रस्थान
अन+ आ+ गत = अनागत
वि +आ+ करण = व्याकरण
अ +परा+ जय = अपराजय
अ+ नि+ यंत्रित = अनियंत्रित
प्रत्यय
प्रत्यय किसे कहते हैं
प्रत्यय की परिभाषा
प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं
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प्रत्यय किसे कहते हैं
हिन्दी भाषा में कई ऐसे शब्दांश होते हैं जिनका न तो कोई स्वतंत्र अस्तित्व होता है और न ही कोई अर्थ होता है किन्तु नए शब्दों के निर्माण में इनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। ये शब्दांश किसी शब्द के अंत में लगकर प्रायः उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं। ऐसे शब्दांशों को प्रत्यय कहा जाता है। उदाहरण के लिए समाज शब्द में इक प्रत्यय लगकर एक नया शब्द सामाजिक बनाता है। इसी तरह बूढ़ा शब्द में पा प्रत्यय लगकर एक नया शब्द बूढ़ापा बनाता है।
प्रत्यय शब्द का निर्माण दो शब्द "प्रति" और "अय" के मिलने से हुआ है। "प्रति" का अर्थ साथ में किन्तु बाद में तथा "अय " का अर्थ होता है चलने वाला, इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में किन्तु बाद में चलने या लगने वाला। अतः किसी शब्द के अंत में लगने वाले शब्दांश जो उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन या रूपांतरण कर दे, प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रत्यय की परिभाषा
इस तरह यह स्पष्ट होता है प्रत्यय शब्दांश होते हैं तथा स्वतंत्र अवस्था में न तो इनका कोई अर्थ होता है और न ही कोई अस्तित्व होता है। ये हमेशा किसी शब्द के पीछे लगते हैं और इनके जुड़ने से उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। इस प्रकार प्रत्यय की परिभाषा देते हुए कहा जा सकता है कि
"प्रत्यय किसी भी सार्थक मूल शब्द के पश्चात् जोड़े जाने वाले वे अविकारी शब्दांश हैं, जो शब्द के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ में या भाव में परिवर्तन कर देते हैं अर्थात् शब्द में नवीन विशेषता उत्पन्न कर देते हैं या अर्थ बदल देते हैं।"
प्रत्यय के उदहारण
बड़ा + आई = बड़ाई
नाटक +कार= नाटककार
मीठा +आस = मिठास
होन +हार = होनहार
समाज +इक = सामाजिक
प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं
प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैं
संस्कृत के प्रत्यय
हिन्दी के प्रत्यय
विदेशी भाषा के प्रत्यय
संस्कृत भाषा के प्रत्यय
हिन्दी में बहुत सारे प्रत्यय संस्कृत भाषा से लिए गए हैं। ये प्रत्यय संस्कृत में शब्दों और मूल धातुओं से जोड़े जाते हैं। संस्कृत प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं
कृत प्रत्यय
वैसे प्रत्यय जो क्रिया या धातु के अंत में लगकर एक नए शब्द की रचना करते हैं, कृत प्रत्यय कहलाते हैं। इन प्रत्ययों के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहा जाता है।
कृत प्रत्यय के उदहारण
अक
लेखक, गायक, पाठक, धावक, कारक, सहायक आदि
आक
तैराक, पढ़ाक, लड़ाक आदि
अन
पालन, नयन, चरण, मोहन, सहन आदि
आई
लड़ाई, भलाई, सिलाई, पढाई आदि
कृत प्रत्यय क्रिया या धातु को प्रायः संज्ञा या विशेषण में बदल देते हैं।
हिन्दी भाषा में कई ऐसे शब्दांश होते हैं जिनका न तो कोई स्वतंत्र अस्तित्व होता है और न ही कोई अर्थ होता है किन्तु नए शब्दों के निर्माण में इनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। ये शब्दांश किसी शब्द के अंत में लगकर प्रायः उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं। ऐसे शब्दांशों को प्रत्यय कहा जाता है। उदाहरण के लिए समाज शब्द में इक प्रत्यय लगकर एक नया शब्द सामाजिक बनाता है। इसी तरह बूढ़ा शब्द में पा प्रत्यय लगकर एक नया शब्द बूढ़ापा बनाता है।
प्रत्यय शब्द का निर्माण दो शब्द "प्रति" और "अय" के मिलने से हुआ है। "प्रति" का अर्थ साथ में किन्तु बाद में तथा "अय " का अर्थ होता है चलने वाला, इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में किन्तु बाद में चलने या लगने वाला। अतः किसी शब्द के अंत में लगने वाले शब्दांश जो उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन या रूपांतरण कर दे, प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रत्यय की परिभाषा
इस तरह यह स्पष्ट होता है प्रत्यय शब्दांश होते हैं तथा स्वतंत्र अवस्था में न तो इनका कोई अर्थ होता है और न ही कोई अस्तित्व होता है। ये हमेशा किसी शब्द के पीछे लगते हैं और इनके जुड़ने से उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। इस प्रकार प्रत्यय की परिभाषा देते हुए कहा जा सकता है कि
"प्रत्यय किसी भी सार्थक मूल शब्द के पश्चात् जोड़े जाने वाले वे अविकारी शब्दांश हैं, जो शब्द के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ में या भाव में परिवर्तन कर देते हैं अर्थात् शब्द में नवीन विशेषता उत्पन्न कर देते हैं या अर्थ बदल देते हैं।"
प्रत्यय के उदहारण
बड़ा + आई = बड़ाई
नाटक +कार= नाटककार
मीठा +आस = मिठास
होन +हार = होनहार
समाज +इक = सामाजिक
प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं
प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैं
संस्कृत के प्रत्यय
हिन्दी के प्रत्यय
विदेशी भाषा के प्रत्यय
संस्कृत भाषा के प्रत्यय
हिन्दी में बहुत सारे प्रत्यय संस्कृत भाषा से लिए गए हैं। ये प्रत्यय संस्कृत में शब्दों और मूल धातुओं से जोड़े जाते हैं। संस्कृत प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं
- कृत प्रत्यय
- तद्धित प्रत्यय
कृत प्रत्यय
वैसे प्रत्यय जो क्रिया या धातु के अंत में लगकर एक नए शब्द की रचना करते हैं, कृत प्रत्यय कहलाते हैं। इन प्रत्ययों के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहा जाता है।
कृत प्रत्यय के उदहारण
अक
लेखक, गायक, पाठक, धावक, कारक, सहायक आदि
आक
तैराक, पढ़ाक, लड़ाक आदि
अन
पालन, नयन, चरण, मोहन, सहन आदि
आई
लड़ाई, भलाई, सिलाई, पढाई आदि
कृत प्रत्यय क्रिया या धातु को प्रायः संज्ञा या विशेषण में बदल देते हैं।
कृत प्रत्यय छह प्रकार के होते हैं
कर्तृवाचक कृत प्रत्यय : इस तरह के प्रत्यय कर्ता यानि कार्य को करने वाला की रचना में सहायक है।
उदाहरण
अक - लेखक, पाठक, धावक आदि
आलू- झगड़ालू, दयालु, कृपालु
ओड़ा - भगोड़ा
ऐया - गवैया
वाला - पढ़नेवाला, बोलनेवाला, गानेवाला
विशेषणवाचक कृत प्रत्यय : ये प्रत्यय किसी शब्द में जुड़कर उसे विशेषण बनाते हैं अर्थात वे शब्द किसी गुण को प्रदर्शित करते हैं।
उदहारण
आउ - बिकाऊ,टिकाऊ
कर्मवाचक कृत प्रत्यय : इस तरह के प्रत्यय शब्द में लगकर उसे "कर्म" के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द का निर्माण करते हैं।
उदाहरण
औना - खिलौना, बिछौना,
नी - ओढ़नी, आसनी
भाववाचक कृत प्रत्यय : जिन कृत प्रत्ययों से भाववाचक संज्ञा का निर्माण होता है उन्हें भाववाचक कृत प्रत्यय कहा जाता है।
उदहारण :
आई - लड़ाई, पढाई, कमाई आदि
करणवाचक कृत प्रत्यय : जिन कृत प्रत्ययों द्वारा बने संज्ञा पद से साधन का बोध हो, करणवाचक कृत प्रत्यय कहलाते हैं।
उदाहरण :
नी - चलनी, करनी
क्रियावाचक कृत प्रत्यय : ऐसे कृत प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण, सज्ञा, अवयव या विशेषता रखने वाली संज्ञा का निर्माण हो, क्रियावाचक कृत प्रत्यय कहलाते हैं।
उदहारण
ता - डूबता, उगता, तैरता
हुआ - डूबा हुआ, टुटा हुआ
तद्धित प्रत्यय : ऐसे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के अंत में आकर नए शब्द का निर्माण करते हैं, तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।
उदाहरण
वान - धैर्यवान, धनवान,
ता - दयालुता, उदारता आदि
हिंदी में तद्धित प्रत्यय आठ प्रकार के होते हैं
पोश - नकाबपोश, मेजपोश
कार - पेशकार, कलमकार
दार - दुकानदार, इज्जतदार
खोर - हरामखोर, रिश्वतखोर
गार - मददगार
आईट - नक्सलाइट
- कर्तृवाचक कृत प्रत्यय
- विशेषणवाचक कृत प्रत्यय
- कर्मवाचक कृत प्रत्यय
- भाववाचक कृत प्रत्यय
- करणवाचक कृत प्रत्यय
- क्रियावाचक कृत प्रत्यय
कर्तृवाचक कृत प्रत्यय : इस तरह के प्रत्यय कर्ता यानि कार्य को करने वाला की रचना में सहायक है।
उदाहरण
अक - लेखक, पाठक, धावक आदि
आलू- झगड़ालू, दयालु, कृपालु
ओड़ा - भगोड़ा
ऐया - गवैया
वाला - पढ़नेवाला, बोलनेवाला, गानेवाला
विशेषणवाचक कृत प्रत्यय : ये प्रत्यय किसी शब्द में जुड़कर उसे विशेषण बनाते हैं अर्थात वे शब्द किसी गुण को प्रदर्शित करते हैं।
उदहारण
आउ - बिकाऊ,टिकाऊ
कर्मवाचक कृत प्रत्यय : इस तरह के प्रत्यय शब्द में लगकर उसे "कर्म" के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द का निर्माण करते हैं।
उदाहरण
औना - खिलौना, बिछौना,
नी - ओढ़नी, आसनी
भाववाचक कृत प्रत्यय : जिन कृत प्रत्ययों से भाववाचक संज्ञा का निर्माण होता है उन्हें भाववाचक कृत प्रत्यय कहा जाता है।
उदहारण :
आई - लड़ाई, पढाई, कमाई आदि
करणवाचक कृत प्रत्यय : जिन कृत प्रत्ययों द्वारा बने संज्ञा पद से साधन का बोध हो, करणवाचक कृत प्रत्यय कहलाते हैं।
उदाहरण :
नी - चलनी, करनी
क्रियावाचक कृत प्रत्यय : ऐसे कृत प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण, सज्ञा, अवयव या विशेषता रखने वाली संज्ञा का निर्माण हो, क्रियावाचक कृत प्रत्यय कहलाते हैं।
उदहारण
ता - डूबता, उगता, तैरता
हुआ - डूबा हुआ, टुटा हुआ
तद्धित प्रत्यय : ऐसे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के अंत में आकर नए शब्द का निर्माण करते हैं, तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।
उदाहरण
वान - धैर्यवान, धनवान,
ता - दयालुता, उदारता आदि
हिंदी में तद्धित प्रत्यय आठ प्रकार के होते हैं
- कर्तृवाचक
- भाववाचक
- गुणवाचक
- सम्बन्धवाचक
- अपत्यवाचक
- स्थानवाचक
- उनवाचक
- अव्ययवाचक
पोश - नकाबपोश, मेजपोश
कार - पेशकार, कलमकार
दार - दुकानदार, इज्जतदार
खोर - हरामखोर, रिश्वतखोर
गार - मददगार
आईट - नक्सलाइट
उपसर्ग किसी शब्द के शुरू में लगकर उस शब्द में नवीनता, परिवर्तन या विशेषता लाता है जबकि प्रत्यय किसी शब्द के अंत में लगकर उस शब्द के भाव में परिवर्तन ला देते हैं।
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