मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी मंदिर में क्या अंतर है
भारत में कई मंदिर अपनी चमत्कारिक और रहस्यमयी शक्तियों की कारण न केवल भारतवर्ष में बल्कि पूरी दुनियां में प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों के प्रति भक्तों का ऐसा विश्वास है कि प्रतिदिन लाखों की संख्या में लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। इन्हीं मंदिरों में मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी का भी नाम है। इन मंदिरों की चमत्कारी शक्तियों के कारण भक्तों का यहाँ तांता लगा रहता है। इन दोनों ही मंदिरों के नाम एक जैसे होने के कारण कई बार लोग भ्रमित हो जाते हैं और दोनों को एक ही समझने की भूल कर बैठते हैं। वास्तव में ऐसा बिलकुल भी नहीं है। दोनों एकदम अलग अलग मंदिर हैं और दोनों ही अलग अलग देवताओं को समर्पित हैं। आज हम भारत के इन्हीं दोनों मंदिर के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मेंहदीपुर वाले बालाजी
"भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे " हनुमान चालीसा की यह पंक्ति का सच देखना है तो आपको मेहंदीपुर वाले बाला जी के मंदिर आना होगा। जी हाँ मंदिर में प्रांगण में पहुंचते ही व्यक्ति के अंदर की बुरी शक्तियां जैसे भूत, प्रेत, पिशाच कांपने लगते हैं। यहां प्रेतात्मा को शरीर से मुक्त करने के लिए उसे कठोर से कठोर दंड दिया जाता है। हम बात कर रहें हैं राजस्थान के दौसा जिले में स्थित प्रसिद्ध हनुमान मंदिर की जिसे मेहंदीपुर बालाजी के नाम से जाना जाता है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी मंदिर कहाँ स्थित है
हनुमान के कई नामों में से एक बालाजी के नाम पर स्थित यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में अपना एक विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर राजस्थान के करौली और दौसा जिले के मध्य दिल्ली जयपुर अहमदाबाद लाइन पर स्थित बाँदीकुई स्टेशन से करीब 24 मील की दूरी पर स्थित है। इसी प्रकार हिंडोन स्टेशन से यहाँ के लिए बस मिलती है।
हनुमान के कई नामों में से एक बालाजी के नाम पर स्थित यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में अपना एक विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर राजस्थान के करौली और दौसा जिले के मध्य दिल्ली जयपुर अहमदाबाद लाइन पर स्थित बाँदीकुई स्टेशन से करीब 24 मील की दूरी पर स्थित है। इसी प्रकार हिंडोन स्टेशन से यहाँ के लिए बस मिलती है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी मंदिर की विशेषताएं
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर में तीन देवों की प्रधानता है श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री भैरव कोतवाल। ये तीनों देव आज से लगभग 1008 वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। ऐसा माना जाता है कि अरावली पहाड़ियों के बीच हनुमान भगवान की मूर्ति अपने आप बनी हुई है। इसे किसी कलाकार की ओर से नहीं बनाया गया है। साथ ही माना जाता है कि इस मंदिर के पुराने महंत को एक सपना आया था। सपने में उन्होंने तीन देवताओं को देखा था। जिसे बाला जी के मंदिर निर्माण का संकेत माना जाता है। जहां महंत जी को ये आदेश दिया गया कि वे सेवा करके अपने कर्तव्य का निर्वहन करे। जिसके बाद से यहां भगवान हनुमान की पूजा अर्चना शुरू कर दी गई और फिर बाद में तीन देवता वहां स्थापित हो गए। मंदिर में स्थापित मेहंदीपुर बालाजी की बायीं छाती में एक छोटा सा छेद है, जिससे लगातार जल निकलता है। लोगों की मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की यह बालाजी का पसीना है। यहां बालाजी के साथ-साथ प्रेतराज और भैरों महाराज भी विराजमान है। भैरों जी को कप्तान कहा जाता है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी का प्रसाद
बालाजी मंदिर की खासियत है कि यहां बालाजी को लड्डू, प्रेतराज को चावल और भैरों को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कहते हैं कि बालाजी के प्रसाद के दो लड्डू खाते ही भूत-प्रेत से पीड़ित व्यक्ति के अंदर मौजूद भूत प्रेत छटपटाने लगता है और अजब-गजब हरकतें करने लगता है। यहां पर चढ़ने वाले प्रसाद को दर्खावस्त और अर्जी कहते हैं। मंदिर में दर्खावस्त का प्रसाद लगने के बाद वहां से तुरंत निकलना होता है। जबकि अर्जी का प्रसाद लेते समय उसे पीछे की ओर फेंकना होता है। इस प्रक्रिया में प्रसाद फेंकते समय पीछे की ओर नहीं देखना चाहिए। आमतौर पर मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद लोग प्रसाद लेकर घर आते हैं लेकिन मेंहदीपुर बालाजी मंदिर से मेहंदीपुर में चढ़ाया गया प्रसाद यहीं पूर्ण कर जाएं। इसे घर पर ले जाने का निषेध है। खासतौर से जो लोग प्रेतबाधा से परेशान हैं, उन्हें और उनके परिजनों को कोई भी मीठी चीज और प्रसाद आदि साथ लेकर नहीं जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सुगंधित वस्तुएं और मिठाई आदि नकारात्मक शक्तियों को अधिक आकर्षित करती हैं। इसलिए इनके संबंध में स्थान और समय आदि का निर्देश दिया गया है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी का प्रसाद
बालाजी मंदिर की खासियत है कि यहां बालाजी को लड्डू, प्रेतराज को चावल और भैरों को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कहते हैं कि बालाजी के प्रसाद के दो लड्डू खाते ही भूत-प्रेत से पीड़ित व्यक्ति के अंदर मौजूद भूत प्रेत छटपटाने लगता है और अजब-गजब हरकतें करने लगता है। यहां पर चढ़ने वाले प्रसाद को दर्खावस्त और अर्जी कहते हैं। मंदिर में दर्खावस्त का प्रसाद लगने के बाद वहां से तुरंत निकलना होता है। जबकि अर्जी का प्रसाद लेते समय उसे पीछे की ओर फेंकना होता है। इस प्रक्रिया में प्रसाद फेंकते समय पीछे की ओर नहीं देखना चाहिए। आमतौर पर मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद लोग प्रसाद लेकर घर आते हैं लेकिन मेंहदीपुर बालाजी मंदिर से मेहंदीपुर में चढ़ाया गया प्रसाद यहीं पूर्ण कर जाएं। इसे घर पर ले जाने का निषेध है। खासतौर से जो लोग प्रेतबाधा से परेशान हैं, उन्हें और उनके परिजनों को कोई भी मीठी चीज और प्रसाद आदि साथ लेकर नहीं जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सुगंधित वस्तुएं और मिठाई आदि नकारात्मक शक्तियों को अधिक आकर्षित करती हैं। इसलिए इनके संबंध में स्थान और समय आदि का निर्देश दिया गया है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी जाने के नियम
मेंहदीपुर बाला जी के दर्शन करने वालों के लिए कुछ विशेष नियम होते हैं। यहां आने से कम से कम एक सप्ताह पहले लहसुन, प्याज, अण्डा, मांस, शराब आदि तामसिक चीज़ों का सेवन बंद करना होता है। सर्वप्रथम बालाजी महाराज के दर्शन से पूर्व प्रेतराज सरकार के दर्शन और प्रेतराज चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके बाद बालाजी महाराज के दर्शन और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए और सबसे अन्त में कोतवाल भैरवनाथ के दर्शन करने के बाद भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। मंदिर में किसी से कोई भी चीज़ यहां तक कि प्रसाद भी न लें और न ही किसी को कोई भी चीज़ जैसे प्रसाद न दें। आते तथा जाते समय भूल से भी पीछे मुड़कर न देखें। आने और जाने की दरखास्त लगाकर जाएं क्योंकि बाबा की आज्ञा से ही कोई मेंहदीपुर में आ तथा जा सकता है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी मंदिर के देवताओं के पद तथा उनका भोग
मेंहदीपुर बाला जी के दर्शन करने वालों के लिए कुछ विशेष नियम होते हैं। यहां आने से कम से कम एक सप्ताह पहले लहसुन, प्याज, अण्डा, मांस, शराब आदि तामसिक चीज़ों का सेवन बंद करना होता है। सर्वप्रथम बालाजी महाराज के दर्शन से पूर्व प्रेतराज सरकार के दर्शन और प्रेतराज चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके बाद बालाजी महाराज के दर्शन और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए और सबसे अन्त में कोतवाल भैरवनाथ के दर्शन करने के बाद भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। मंदिर में किसी से कोई भी चीज़ यहां तक कि प्रसाद भी न लें और न ही किसी को कोई भी चीज़ जैसे प्रसाद न दें। आते तथा जाते समय भूल से भी पीछे मुड़कर न देखें। आने और जाने की दरखास्त लगाकर जाएं क्योंकि बाबा की आज्ञा से ही कोई मेंहदीपुर में आ तथा जा सकता है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी मंदिर के देवताओं के पद तथा उनका भोग
- बालाजी महाराज - बालाजी महाराज मेंहदीपुर के राजा और भगवान शिव के अवतार हैं। इनके समक्ष ही बुरी आत्माओं की पेशी लगती है। बालाजी महाराज को लड्डूओं का भोग लगाया जाता है।
- भैरव कोतवाल - भैरव बाबा बालाजी महाराज की सेना के सेनापति और भगवान शिव के ही अवतार हैं। इसी कारण इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। इन्हें उड़द की दाल से बनी चीजों का भोग प्रिय है। खास कर उड़द की दाल से बने दही भल्ले और मिठाइयों में इन्हें जलेबी और गुलगुले का भोग विशेष प्रिय है।
- प्रेतराज सरकार - प्रेतराज सरकार बालाजी महाराज के दरबार के दण्डनायक हैं। ये ही बुरी आत्माओं को दण्ड देने का अधिकार रखते हैं। इन्हें पके हुए चावलों और खीर का भोग लगता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर
भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर जो आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है, वास्तव में भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर है। इसे तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है। तिरुपति भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक है और इसका उल्लेख कई प्राचीन वेदों और पुराणों में मिलता है। यह मंदिर विष्णु के एक रूप वेंकटेश्वर को समर्पित है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे कलियुग के परीक्षणों और परेशानियों से मानव जाति को बचाने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। इसलिए इस स्थान को कलियुग वैकुण्ठ नाम भी मिला है और यहाँ के भगवान को कलियुग प्रत्यक्ष दैवम कहा जाता है। मंदिर को तिरुमाला मंदिर, तिरुपति मंदिर और तिरुपति बालाजी मंदिर जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। वेंकटेश्वर को कई अन्य नामों से जाना जाता है: बालाजी, गोविंदा और श्रीनिवास आदि । कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं।
'ओम नमो वेंकटेशय' का निरंतर जप, उत्साही तीर्थयात्रियों की भीड़ और भगवान वेंकटेश्वर की 8 फीट ऊंची मूर्ति - श्री वेंकटेश्वर मंदिर, सभी इस मंदिर को अलौकिक स्वरूप प्रदान करती हैं। 26 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस मंदिर में प्रतिदिन लगभग 50,000 तीर्थयात्री आते हैं, इस मंदिर को आमतौर पर सात पहाड़ियों के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर कहाँ है
तिरुपति बालाजी मंदिर आँध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति नामक स्थान पर है। तिरुमाला हिल्स पर स्थित है। तिरुमाला हिल्स शेषचलम हिल्स रेंज का हिस्सा हैं। पहाड़ियाँ समुद्र तल से 853 मीटर (2,799 फीट) ऊपर हैं और इसमें सात चोटियाँ शामिल हैं, जो आदिशेष के सात प्रमुखों का प्रतिनिधित्व करती हैं। मंदिर सातवें शिखर पर स्थित है- वेंकटाद्री, श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी तट पर, एक पवित्र जल कुंड। इसलिए मंदिर को "सात पहाड़ियों का मंदिर" भी कहा जाता है। तिरुमाला शहर में लगभग 10.33 वर्ग मील (26.75 किमी 2) का क्षेत्र शामिल है।
तिरुपति बालाजी मंदिर की कुछ किवदंतियां
इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु अवतार ही है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था। यह सरोवर तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ कर गये थे। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।
इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु अवतार ही है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था। यह सरोवर तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ कर गये थे। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।
तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास
तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है। तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था।माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15 सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। हैदराबाद के मठ का भी दान रहा है।1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।
तिरुपति बालाजी मंदिर की विशेषताएं
श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है। यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वैंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर साक्षत विराजमान है। यह मुख्य मंदिर के प्रांगण में है। मंदिर परिसर में अति सुंदरता से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं। मंदिर परिसर में मुख्श् दर्शनीय स्थल हैं:पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि।
कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। हालांकि दर्शन करने वाले भक्तों के लिए यहां विभिन्न जगहों तथा बैंकों से एक विशेष पर्ची कटती है। इसी पर्ची के माध्यम से आप यहां भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन कर सकते है।
श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है। यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वैंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर साक्षत विराजमान है। यह मुख्य मंदिर के प्रांगण में है। मंदिर परिसर में अति सुंदरता से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं। मंदिर परिसर में मुख्श् दर्शनीय स्थल हैं:पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि।
कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। हालांकि दर्शन करने वाले भक्तों के लिए यहां विभिन्न जगहों तथा बैंकों से एक विशेष पर्ची कटती है। इसी पर्ची के माध्यम से आप यहां भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन कर सकते है।
तिरुपति बालाजी मंदिर के कुछ रहस्य
मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी मंदिर में क्या अंतर है
इस प्रकार हम देखते हैं कि मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी दोनों ही अलग अलग मंदिर हैं और अलग अलग देवताओं को समर्पित हैं। ये दोनों मंदिर भारत के अलग अलग राज्यों में स्थित हैं। ये दोनों ही मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध हैं और ऐसी मान्यता है यहाँ दर्शन मात्र से भक्तों के काम बन जाते हैं।
- मुख्यद्वार के दाएं बालरूप में बालाजी को ठोड़ी से रक्त आया था, उसी समय से बालाजी के ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरू हुई।
- भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश हैं, और उनमें गुत्थिया नहीं आती और वह हमेशा ताजा रहेते है।
- मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है, उस गांव में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषेध है। वहां पर लोग नियम से रहते हैं। वहीं से लाए गए फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं और वहीं की ही अन्य वस्तुओं को चढाया जाता है जैसे- दूध, घी, माखन आदि।
- भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े दिखते हैं लेकिन, वे दाई तरफ के कोने में खड़े हैं बाहर से देखने पर ऎसा लगता है।
- बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है।
- गर्भगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता, बालाजी के पीछे एक जलकुंड है उन्हें वहीं पीछे देखे बिना उनका विसर्जन किया जाता है।
- बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो, वहां गीलापन रहता ही है, वहां पर कान लगाने पर समुद्र घोष सुनाई देता है।
- बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती हैं। हर गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है उस चंदन को निकालने पर लक्ष्मीजी की छबि उस पर उतर आती है।
- बालाजी के जलकुंड में विसर्जित वस्तुए तिरूपति से 20 किलोमीटर दूर वेरपेडु में बाहर आती हैं।
- गर्भगृह मे जलने वाले दीपक कभी बुझते नही हैं, वे कितने ही हजार सालों से जल रहे हैं किसी को पता भी नही है।
मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी मंदिर में क्या अंतर है
- मेंहदीपुर वाले बालाजी मंदिर में हनुमानजी के एक रूप बालाजी की पूजा होती है जबकि तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु के एक रूप श्री वेंकेटेश्वर की मूर्ति है।
- मेंहदीपुर वाले बालाजी का मंदिर राजस्थान के करौली जिले में स्थित है वहीँ तिरुपति बालाजी मंदिर आँध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति में है।
- मेंहदीपुर बालाजी मंदिर में तीन देवों की प्रधानता है श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री भैरव कोतवाल वहीँ तिरुपति बालाजी मंदिर में श्री वेंकेटेश्वर भगवान की मूर्ति है।
- मेंहदीपुर वाले बालाजी मंदिर की खासियत है कि यहां बालाजी को लड्डू, प्रेतराज को चावल और भैरों को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है वहीँ तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान् को एक विशेष लड्डू चढ़ाया जाता है जो मंदिर की ही रसोई में तैयार किया जाता है।
- मेंहदीपुर वाले बालाजी मंदिर का प्रसाद घर ले जाना निषिद्ध है वहीँ तिरुपति बालाजी का प्रसाद कोई भी घर ले जा सकता है, ऑनलाइन भी मंगा सकता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मेंहदीपुर वाले बालाजी और तिरुपति बालाजी दोनों ही अलग अलग मंदिर हैं और अलग अलग देवताओं को समर्पित हैं। ये दोनों मंदिर भारत के अलग अलग राज्यों में स्थित हैं। ये दोनों ही मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध हैं और ऐसी मान्यता है यहाँ दर्शन मात्र से भक्तों के काम बन जाते हैं।
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