इन जातियों को शिड्यूल्ड या अनुसूचित कहने का कारण यह है कि इन जातियों को भारतीय संविधान की एक सूची या शिड्यूल में शामिल किया गया है। भारत के संविधान में कुल 12 सूची या शिड्यूल हैं। शिड्यूल कास्ट में मुख्यतः उन जातियों को शामिल किया गया है जिन जातियों पूर्व में अछूत,अस्पृश्य,हरिजन या दलित समझा जाता था वहीँ शिड्यूलेड़ ट्राइब में मुख्य रूप से आदिवासी जीवन बिताने वाली जातियों को रखा गया है। इन जातियों को शिड्यूल्ड या अनुसूचित करने का मुख्य उद्द्येश्य इन लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाना था ताकि इनका सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक विकास हो सके और इन्हें असमानता या भेदभाव का सामना न करना पड़े।
शिड्यूल्ड कास्ट या SC अर्थात अनुसूचित जाति वास्तव में जातियों की एक संवैधानिक सूची है जिसमे उन जातियों को शामिल किया गया है जो एक समय अति शूद्र, बहिस्कृत समाज, अछूत, अस्पृश्य, हरिजन या दलित कहे जाते थें। इन जातियों को अनुसूचित करने का उद्द्येश्य समाज में इनसे हो रहे भेदभाव को दूर करना और उनका सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास करना है। इसके लिए संविधान में उन्हें कुछ अधिकार प्रदान किये गए हैं। सरकारी नौकरियों, शिक्षा तथा चुनावों में उनके लिए आरक्षण, आर्थिक मदद और उनकी सुरक्षा के लिए कानून आदि की व्यवस्था की गयी है।
भारत के संविधान में शिड्यूल्ड कास्ट को अनुच्छेद 366(24) में परिभाषित किया गया है। संविधान के इस अनुच्छेद के अनुसार अनुसूचित जाति का अर्थ है ऐसी जातियां, नस्ल या जनजातियां या इन जातियों के कुछ हिस्से जिन्हें संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जाति माना जाता है
शिड्यूल्ड कास्ट शब्द का नामकरण का सुझाव सबसे पहले 1932 में तत्कालीन प्रोविंशियल गवर्नमेंट ऑफ़ बंगाल की फ्रैंचाइज़ी कमिटी ने दिया। वास्तव में 1931 में एच हटन के नेतृत्व में हुई जनगणना में पहली बार अस्पृश्य जातियों की संख्या का भी उल्लेख किया गया और बताया गया कि भारत में 1108 ऐसी जातियां हैं जिन्हें धर्म और समाज से बाहर माना जाता है उन्हें सामाजिक तौर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इन जातियों को अस्पृश्य या अछूत कहा जाता था। हटन ने इन जातियों की एक अलग से सूची तैयार की और इन्हे बहिस्कृत समाज के अंतर्गत रखा। 1935 में संसद में “गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935” पारित हुआ जिसमे राज्यों को स्वशासन के वृहत अधिकार के साथ साथ संघीय ढांचे को भी स्थापित करने की अवधारणा थी। इसी एक्ट के तहत जो 1937 में प्रभावी हुआ, समाज के दबे कुचले लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी।
“such castes, parts of groups within castes, which appear to His Majesty in Council to correspond to the classes of persons formerly known as the ‘Depressed Classes’, as His Majesty in Council may prefer”.
Government of India Act, 1935
इसी एक्ट में सबसे पहले अनुसूचित जाति यानि शिड्यूल्ड कास्ट शब्द का प्रयोग किया गया था जिसमे वैसी जातियां या जातियों के भीतर के वर्ग जो पूर्व में बहिस्कृत समाज के अंतर्गत आती थी को रखा गया। ब्रिटिश भारत के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया (शिड्यूल्ड कास्ट) आर्डर 1936 में शिड्यूल्ड कास्ट जातीय की सूची को पुरे भारत के सभी प्रोविंसों के लिए रखा गया।
भारत के राष्ट्रपति और राज्यपालों को जातियों और जनजातियों की सूची संकलित करने का जनादेश दिया जिसमे आवश्यकतानुसार बाद में उन्हें सम्पादित करने का अधिकार भी दिया गया। इसे भारत के संविधान के द कंस्टीटूशन (शिड्यूल्ड कास्ट) आर्डर या अनुसूचित जाति अध्यादेश 1950 द्वारा लागू किया गया। जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भाग या उनमें के यूथ अभिप्रेत हैं जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 341 के अधीन अनुसूचित जातियाँ समझा जाता है।
शिड्यूल्ड कास्ट में सम्मिलित जातियों को समाज में उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने के लिए चुनावों में, नौकरियों में और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। 2011 की जनसँख्या के अनुसार अनुसूचित जातियों का प्रतिशत भारत की कुल जनसँख्या का 16.6 प्रतिशत है। इन जातियो के अधिकारों की रक्षा के लिए तथा उनपर होने वाले अत्याचारों की रोकथाम के लिए संविधान में कानून हैं।
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भारत में कई ऐसी जनजातियां हैं जो समाज की मुख्य धारा से दूर अलग थलग रह कर अपना जीवन यापन करती हैं। इनका अपना ही समाज होता है इनके अपने अपने रीती रिवाज और नियम कानून होते हैं। ये सभ्य समाज से दूर जंगलों, पहाड़ों में या उनके निकट अपना जीवन यापन करते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में हम उन्हें आदिवासी कहते हैं। मुख्य समाज से दूर होने की वजह से इनमे शिक्षा और विकास का आभाव है। इसी वजह से इनका सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक विकास नहीं हुआ और ये समाज और देश की मुख्य धारा से काफी दूर काफी पिछड़ चुके हैं। भारत सरकार ने इन जनजातियों के उत्थान के लिए तथा इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए इन जनजातियों को अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत रखकर उनके लिए कई अधिनियम तथा कानून बनाया है ताकि ये समाज के साथ कदम में कदम मिलकर चल सके।
अनुसूचित जनजाति शब्द का सबसे पहले भारत के संविधान में प्रयोग किया गया। हालाँकि इसकी परिभाषा को 1931 की भारत की जनगणना को ही आधार मान कर किया गया।
अनुच्छेद 366 (25) के अनुसार “ऐसी आदिवासी जाति या आदिवासी समुदाय या इन आदिवासी जातियों और आदिवासी समुदायों का भाग या उनके समूह के रूप में, जिन्हें इस संविधान के उद्द्येश्यों के लिए अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजातियां माना गया है।
“Scheduled Tribes” means such tribes or tribal communities or parts of or groups within such tribes communities as are deemed under Article 342 to be Scheduled Tribes for the purposes of this Constitution. Article 342 of Constitution describes Scheduled Tribes as:
(1) The President may with respect to any State or Union Territory, and where it is a State, after consultation with the Governor therefore, by public notification, specify the tribes or tribal communities or parts of or groups within tribes or tribal communities which shall for the purposes of this constitution be deemed to be Scheduled Tribes in relation to that State or Union Territory, as the case may be.
(2) Parliament may by law include in or exclude from the list of Scheduled Tribes specified in a notification issued under clause (1) any tribe or tribunal community or part of or groups within any tribe or tribal community, but save as aforesaid a notification issued under the said clause shall not be varied by any subsequent notification
शिड्यूल्ड ट्राइब में सम्मिलित जातियों की संख्या अनुसूचित जनजाति अध्यादेश 1950 के अनुसार 744 थीं। 2011 की जनगणना के अनुसार इनका प्रतिशत 8.6 है। इन जातियों के पिछड़ेपन की मुख्य वजह इनका भौगोलिक रूप से समाज से दूर रहना था। इनका अपना समाज, संस्कृति, रीती रिवाज होते थे। समाज की मुख्य धारा से कटे होने की वजह से इनका शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक विकास नहीं हो पाया। इसकी वजह से ये गरीबी, कुपोषण, अन्धविश्वास और बीमारियों से हमेशा से जूझते रहे हैं। सरकार इनके विकास और समानता के लिए कई कदम जैसे आरक्षण, आर्थिक मदद, कानूनी मदद आदि उठायी है।
Conclusion
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति दोनों ही वर्गों में रहन सहन, रीति रिवाज, संस्कृति, भाषा, निवास के साथ साथ समाज में शोषित और अलग थलग पड़ने की अलग अलग वजहें हैं। अनुसूचित जाति जहाँ समुदाय और समाज में रहकर भी अपने अधिकारों से वंचित थी और भेदभाव का सामना करती थीं वहीँ अनुसूचित जनजाति के लोग अपने संकोची स्वभाव और निवास की वजह से समाज से दूर होते थे।
Ref :
Unknown
Aise hi obc aur general ki bhi jankari dijiye
Unknown
asan sabdo me sahi h….