अति प्राचीन काल से ही मनुष्य अपनी बीमारियों की चिकित्सा के लिए भिन्न भिन्न चीज़ों और तरीकों को आजमाता और इस्तेमाल करता आया है। मनुष्य की आवश्यकता, तजुर्बा और उसकी खोजी प्रवृति ने चिकित्सा के इन तरीकों को काफी समृद्ध और उपयोगी बनाया। कालांतर में ये तरीके विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के रूप में विकसित हुए। इन चिकित्सा पद्धतियों में आयुर्वेद, यूनानी, होमिओपैथ, एलोपैथी,योग, नेचुरोपैथी, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर आदि प्रमुख हैं जिन्हे लगभग पूरी दुनिया में प्रयोग किया जाता है। इन चिकित्सा पद्धतियों ने निश्चय ही मानव जीवन को स्वस्थ और दीर्घायु बनाया है। इन चिकित्सा पद्धतियों में योगा, एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर को छोड़ कर अन्य सभी में औषधियों का प्रयोग अनिवार्य होता है। अंग्रेजी दवाओं और अन्य खर्चीले इलाजों और उनके साइड इफ़ेक्ट की वजह से लोग योगा, एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर की तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं। बिना दवाओं के इलाज वास्तव में काफी हैरानी और जिज्ञासा का विषय है। यही वजह है लोग एक्यूपंक्चर क्या है,एक्यूप्रेशर क्या है, एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर में क्या अंतर है आदि तमाम सवालों के जवाब आज इंटरनेट और अन्य माध्यमों से जानना चाहते हैं। आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम एक्यूपंक्चर क्या है,एक्यूप्रेशर क्या है जैसे तमाम सवालों को जानेंगे और साथ में यह भी जानेगे कि दोनों में अंतर क्या है।
क्या है एक्यूपंक्चर
दर्द तथा कई अन्य बीमारियों से शरीर को निजात दिलाने के लिए शरीर के कुछ निश्चित बिंदुओं पर पतली-पतली धातु की सुई चुभाकर चिकित्सा करने की पद्धति एक्यूपंक्चर कहलाती है। इस चिकित्सा पद्धति में किसी दवा या अन्य पथ्य का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि उनकी जगह चिकित्सक मरीज की बीमारी के आधार पर कुछ निश्चित जगह तय करके उस जगह सुई चुभोते हैं। ये सुइयां शरीर के एनर्जी पावर के बहाव को नियंत्रित करती हैं अर्थात एनर्जी पावर के बहाव को एक नियत और बाधारहित बनाती है जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। यह एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जो चीन सहित दुनियां के कई अन्य देशों में लोकप्रिय है।
एक्यूपंक्चर का इतिहास
एक मान्यता के अनुसार चीनी ट्रेडिशनल चिकित्सा पद्धति एक्यूपंक्चर ईसा पूर्व लगभग 6000 वर्ष से किया जा रहा है। इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में बताया जाता है कि युद्ध में तीर से घायल कुछ सैनिकों की कुछ पुरानी बीमारियां जो लाइलाज थी, ठीक हो गयीं और तभी से सुई चुभाकर इलाज करने की परंपरा प्रारंभ हुई। हालाँकि कुछ विद्वान इसे चीन में पाषाण युग से शुरू हुआ मानते हैं। उस समय बियन शी या नुकीले पत्थरों से इसका अभ्यास किया जाता था। मंगोलिया में 1963 में एक बियन पत्थर मिलने से इसकी उत्पत्ति निओलिथिक काल की पुष्टि करती है। शांग राजवंश (1600-1100 BCE) के काल के हाइरोग्लिफ्स और पिक्टोग्राफ मिले हैं जो यह दर्शाते हैं कि एक्यूपंक्चर का अभ्यास मोक्सीबस्टन के साथ-साथ किया जाता था। यूरोप में, ओट्ज़ी द आइसमैन के 5000 साल पुराने ममिकृत शरीर के परिक्षण में उसके शरीर में टैटू के 15 समूहों की पहचान की गई है, जिनमें से कुछ ऐसी जगह स्थित हैं जिसे अब समकालीन एक्यूपंक्चर बिन्दुओं के रूप में देखा जाता है। इस तथ्य को इस बात के साक्ष्य के रूप में पेश किया जाता है कि एक्यूपंक्चर के समान कोई अभ्यास वजूद में था जिसे प्रारंभिक कांस्य आयु के दौरान यूरेशिया में अन्य स्थानों में किया जाता था। एक्यूपंक्चर का प्रारंभिक लिखित अभिलेख चीनी ग्रन्थ शिजी (रिकॉर्ड्स ऑफ़ द ग्रैंड हिस्टोरियन) ई॰पू॰ दूसरी सदी के उसके इतिहास में विस्तृत चिकित्सीय पाठ हुआंग्डी नेइजिंग है।
एक्यूपंक्चर चिक्तिसा में सुई चुभाने के स्थान निश्चित हैं। पुरे शरीर में मुख्य एक्यूपंक्चर बिंदुओं को बारह मुख्य और आठ अतिरिक्त शिरोबिंदु में बांटा जाता हैं। कुल चौदह “चैनल” के लिए जिसके माध्यम से qi और रक्त प्रवाहित होता है। अन्य बिंदु जो चौदह चैनलों पर नहीं हैं उन पर भी सुई लगाई जाती है। स्थानीय दर्द को “अशी” सुई लगा कर इलाज किया जाता है जहां qi या रक्त को ठहरा हुआ माना जाता है। बारह मुख्य चैनल झांग-फू हैं फेफड़े, बड़ी आंत, पेट, प्लीहा, हार्ट, छोटी आंतों, मूत्राशय, गुर्दे, पेरी कार्डियम, पित्ताशय, यकृत और अमूर्त। आठ अन्य रास्ते, जिन्हें सामूहिक रूप में क्वी जिंग बा माई संदर्भित किया जाता है, उनमें शामिल है लुओ वेसल्स, डाइवरजेंट्स, सिन्यू चैनल, रेन माई और डू माई और धड़ के पीछे के हिस्से में भी सुई चुभाई जाती है। शेष छह क्वी जिंग बा माई को मुख्य बारह शिरोबिंदु पर कुशलता से सुई चुभाई जाती है।
एक्यु पॉइंट्स
हमारे शरीर के विभिन्न भागों में कई एक्यूपंक्चर (Accupuncture) बिंदु होते हैं। लेकिन मुख्य रूप से तीन ऐसे बिंदु होते हैं, जिनका उपचार के दौरान ज्यादा प्रयोग किया जाता है;
लार्ज इंटेस्टाइन
यह बिंदु अंगूठे और चारों अंगुलियों के बीच हथेलियों के मुलायम हिस्से में पाए जाते हैं।
लिवर
इस बिंदु का स्थान पैरों के पंजे के ऊपर, अंगूठे और उसके पास वाली उंगली के बीच होता है।
स्पलीन
इस बिंदु का स्थान पैर के आतंरिक हिस्सें में एड़ी से थोड़ा ऊपर होता है।
एक्यूपंक्चर किन रोगों में उपयोगी होता है
एक्युपंक्चर माइग्रेन, तनाव से होने वाले सिरदर्द, एंग्जाइटी, साइनस, अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस, चेहरे का लकवा, टॉन्सिल्स, आंख की बीमारी ऑप्टिक नर्व ऑट्रॉफी, पुराना जुकाम, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, आर्थराइटिस, बॉडी पेन, गैस, एसिडिटी, इनफर्टिलिटी और महिलाओं की दूसरी समस्याएं आदि में बहुत असरदार माना जाता है। इससे इम्युनिटी बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
एक्यूपंक्चर के लाभ
एक्यूप्रेशर क्या है
एक्यूप्रेशर चिकित्सा की एक वैकल्पिक पद्धति है जिसमे शरीर के कुछ निश्चित स्थानों पर दबा कर या मालिश करके रोगों का इलाज किया जाता है। इस पद्धति में रोगोँ के इलाज के लिए किसी दवा का प्रयोग नहीं किया जाता। यह एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जिसकी शुरुवात चीन से हुई मानी जाती है। चीन के अलावे यह भारत सहित कई अन्य देशों में लोकप्रिय है।
एक्यूप्रेशर का सिद्धांत
हमारे शरीर में जीवन ऊर्जा जिसे ची (Qi) कहा जाता है, का सतत प्रवाह ही हमारे शरीर के स्वस्थ होने का कारण है। ची हमारे शरीर की सतह के निकट स्थित चैनलों के माध्यम से प्रवाहित होती है जिसे मेरीडियन या मेरीडियन पॉइंट्स भी कहा जाता है। हमारे शरीर में सभी विशिष्ट अंगों से जुड़े 12 चैनल्स होते हैं जिनपर एक्यु पॉइंट्स स्थित होते हैं। ची के प्रवाह में बाधा होने की स्थिति में इन्हीं एक्यु पॉइंट्स को दबाया या मालिश किया जाता है जिससे इसका प्रवाह पुनः सुचारु रूप से हो सके। हमारे शरीर में मुख्य चैनलों पर 365 एक्यु पॉइंट्स तथा इनके अतिरिक्त 650 अन्य एक्यु पॉइंट्स होते हैं। शरीर में ची के प्रवाह के लिए अलग अलग तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इनमे से मुख्य हैं
विभिन्न तरह के प्रेशर या मालिश का प्रयोग कुछ सेकंड से लेकर कई मिनट तक का हो सकता है। प्रेशर देने के भी कई तरीके हैं सर्कुलर मूवमेंट, इन एंड आउट पुश अथवा दोनों ही। उपचार प्रतिदिन कई बार या एक दिन बीच करके किया जाता है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा किन बीमारियों में कराना चाहिए
एक्यूप्रेशर बैक पैन, सरदर्द, थकान, चिंता,मानसिक तनाव, उदासी तथा कई अन्य रोगों में बहुत ही फायदेमंद होता है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा कब नहीं कराना चाहिए
कुछ रोगों में जैसे उच्च रक्तदाब के मरीज, गर्भवस्था आदि में एक्यूप्रेशर से बचना चाहिए। कुछ ऐसे एक्यु पॉइंट्स हैं जहाँ दबाव डालने से गर्भस्राव होने का खतरा होता है। खुले घाव, सूजन आदि में भी एक्यूप्रेशर से चिकित्सा नहीं करनी चाहिए।
एक्यूप्रेशर यंत्र
वैसे तो एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति में किसी दवा या मशीन की आवश्यकता नहीं होती है फिर भी विभिन्न तरह के दाब के लिए बाज़ार में कुछ एक्यूप्रेशर यंत्र उपलब्ध हैं। ये यंत्र अपने विशिष्ट आकर और उभार की वजह से शरीर के विभिन्न भागों में उचित दबाव बनाने में काफी उपयोगी साबित होते हैं। इन यंत्रों में एक्यु बॉल रबड़ की बनी एक छोटी गेंद होती है जिसमे चारों ओर उभार होते हैं। इसी तरह ऊर्जा रोलर प्रोट्यूबेरेन्स के साथ हाथ में पकड़ने के लिए एक सिलिंडर होता है। फुट रोलर, पावर मैट या पिरामिड मैट आदि पैरों के लिए एक्यूप्रेशर एक्सेसरीज होती है। स्पाइन रोलर एक खुरदुरा रोलर होता है जिसे रीढ़ की हड्डी के ऊपर लुढ़काया जाता है।
एक्यूप्रेशर के फायदे
एक्यूप्रेशर दर्द से राहत पंहुचाने के अतिरिक्त कई अन्य चीज़ों में भी लाभदायक है
एक्यूप्रेशर से नुक्सान
एक्यूप्रेशर चिकत्सा के कुछ साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं
एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर में क्या अंतर है
वैसे तो एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर दोनों ही शरीर में ऊर्जा का प्रवाह qi को नियंत्रित करने के सिद्धांत पर कार्य करते हैं और इसके प्रवाह को नियत और बाधारहित करके रोगी की चिकित्सा करते हैं किन्तु दोनों के कार्य प्रणाली में अंतर है।
Conclusion
एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर दोनों ही शरीर में ऊर्जा के बाधारहित प्रवाह के सिद्धांत को स्वस्थ शरीर का आधार मानते हैं। इन दोनों ही पद्धतियों में qi के प्रवाह में रुकावट को दूर करने और उसे नियंत्रित कर शरीर को रोगमुक्त किया जाता है। इस ऊर्जा के प्रवाह को बनाये रखने के लिए एक्यूपंक्चर में शरीर में विभिन्न स्थानों पर धातु की पतली पतली सुई चुभाया जाता है वहीँ एक्यूप्रेशर में यह कार्य शरीर के विभिन्न पॉइंट्स को दबा के किया जाता है।