वैसे तो क्रिकेट बल्लेबाज़ों का खेल माना जाता है फिर भी इसमें गेंदबाज़ों के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता। किसी भी टीम में गेंदबाज़ों का चयन बड़ी ही सावधानी से किया जाता है। इसकी वजह भी है एक सधा हुआ गेंदबाज़ किसी मैच के रुख को अपनी ओर मोड़ सकता है। गेंदबाज़ बल्लेबाज़ों पर अंकुश लगा कर उन्हें एक बड़ा टारगेट बनाने से रोक सकते हैं या फिर उन्हें टारगेट तक पंहुचने में बाधा बन सकते हैं। बॉलिंग की कई शैलियां प्रचलित हैं तेज गेंदबाज़ी, मध्यम गति, धीमी, स्विंग या फिर स्पिन गेंदबाज़ी। स्विंग और स्पिन गेंदबाज़ी बॉलर की विशेष दक्षता का प्रमाण होती है और यह बॉलिंग को और भी धारदार बनाती हैं। क्रिकेट के विशेषज्ञ तो स्विंग और स्पिन बॉलिंग को खूब समझते हैं किन्तु आम जन के लिए कई बार ये कन्फ्यूजन पैदा करता है। आईये आसान शब्दों में जाने स्विंग और स्पिन बॉलिंग क्या है और स्विंग और स्पिन बॉलिंग में क्या अंतर है ?
क्रिकेट में तेज गेंदवाजों का अपना ही जलवा होता है। तेज गेंदबाजों को झेलना और खेलना कई बार अच्छे अच्छे बल्लेबाजों को भी परेशान कर देता है। तेज गेंदबाज़ भी बॉल की गति के साथ नए नए प्रयोग करते रहते हैं ताकि उनकी बॉल और भी घातक साबित हो। इसी क्रम में तेज गेंदबाज़ अपनी बाल को हवा में स्विंग कराते हैं जिससे बल्लेबाज उसे भांप नहीं पाता और चकमा खा जाता है और वह आउट हो जाता है। हवा में बॉल को स्विंग कराने की कला ही स्विंग बॉलिंग कहलाती है। स्विंग बॉलिंग तीन तरह से की जाती है इन स्विंग, आउट स्विंग और रिवर्स स्विंग।
स्विंग का हिंदी में अर्थ होता है झूलना । गेंदबाज गेंद फेंकते समय इस प्रकार फेंकते हैं जिससे कि गेंद हवा में किसी एक साइड झूल जाए। यहीं पर बल्लेबाज़ गच्चा खा जाते हैं और गलत शॉट खेल बैठते हैं और यही शॉट उनके लिए घातक होता है। गेंद को स्विंग कराने के लिए गेंदबाज गेंद की सीम या सिलाई का इस्तेमाल करते हैं। वे गेंद को इस प्रकार पकड़ते हैं जिससे कि गेंद की सीम हवा के प्रवाह की गति को में अंतर पैदा कर दे। सीम वाला हिस्सा चूँकि खुरदुरा होता है अतः वह हवा में ज्यादा अवरोध पैदा करता है। साइंस की भाषा में कहें तो सीम वाले हिस्से में हवा टर्बुलेंट और चिकने हिस्से की हवा में लेमिनार गति उत्पन्न होती है। यह टर्बुलेंट हवा गेंद से जल्दी अलग हो जाती है और इसी वजह से गेंद सीम की ओर स्विंग कर जाती है। इस तरह के स्विंग कराने की तकनीक कन्वेंशनल स्विंग कहलाती है।
कोई भी बॉल तीन तरह से स्विंग कराई जा सकती है इन स्विंग, आउट स्विंग और रिवर्स स्विंग। बॉल के स्विंग होने की दिशा के आधार पर ही इसे ऐसा कहा जाता है।
जब गेंद नयी होती है तब गेंदबाज गेंद की सीम का प्रयोग करके गेंद को ऑफ स्टंप से अंदर की तरफ स्विंग कराते हैं। इसके लिए बॉलर गेंद की सिलाई को वर्टिकल रखते हुए पहली दो उँगलियों को थोड़ा क्रॉस रखते हुए बॉल को पकड़ते हैं जिससे कि सीम थोड़ी लेग साइड में झुकी हो। सीम का खुरदुरापन बॉल को अंदर की ओर स्विंग कराता है और बॉल बाहर से मिडिल या लेग स्टंप की तरफ झूल जाती है। स्विंग की यह शैली इन स्विंग बॉलिंग कहलाती है।
कई बार तेज गेंदबाज़ बॉल को लेग या मिडिल स्टंप से बाहर की तरफ स्विंग कराते हैं। गेंदबाज़ी की यह कला जिसमे तेज गेंदबाज़ अपनी बॉल को स्टंप के ऑफ साइड यानि बाहर की तरफ स्विंग कराते हैं आउट स्विंग गेंदबाज़ी कहलाती है। बॉलर गेंदबाज़ी करते समय बॉल की सीम को थोड़ा क्रॉस बाहर की तरफ रखते हुए पहली दो उँगलियों से बॉल पर पकड़ बनाते हैं।
करीब तीस चालीस ओवर का खेल हो जाने के बाद बॉल पुरानी होने लगती है और घिसने लगती है। ऐसी दशा में बॉल खुरदुरी हो जाती है। कई बार खिलाडी बॉल को जानबूझ कर एक साइड से खूब घिसते हैं और उसपर थूक लगाते हैं। ऐसा वे बॉल की दोनों सतहों को असमान करने के लिए करते हैं। ऐसी दशा में बॉल सीम के उलटी दिशा में स्विंग करने लगती है। इस तरह की स्विंग रिवर्स स्विंग कहलाती है। हालाँकि ऐसी स्थिति में दोनों ही तरफ खुरदुरापन की वजह से दोनों तरफ हवा का फ्लो टर्बुलेंट होता है किन्तु बॉल का खुरदुरापन सीम वाले हिस्से से ज्यादा होने की वजह से हवा में ज्यादा टर्बुलेंट फ्लो पैदा करता है और नतीजा बॉल उसी तरफ स्विंग हो जाती है।इस तरह बॉल हवा में ही स्विंग कराने एक्शन के विपरीत स्विंग होती है और बल्लेबाज गेंदबाजी के एक्शन से बॉल के मूवमेंट का अंदाजा नहीं लगा पाते और गलत शॉट खेल बैठते हैं। रिवर्स स्विंग गेंदबाजों का एक बेहद घातक हथियार है जो किसी भी मैच का पासा पलटने की कूबत रखता है।
जिस प्रकार तेज गेंदबाज़ों के लिए स्विंग गेंदबाज़ी एक ब्रह्मास्त्र है ठीक उसी प्रकार धीमी या माध्यम गति वाले गेंदबाज़ो के लिए स्पिन गेंदबाज़ी किसी खतरनाक हथियार से कम नहीं है। स्पिन बॉल जिसे फिरकी बॉल भी कहते हैं गेंदबाज़ी की वह तकनीक या कला है जिसमे गेंदबाज़ बॉल को उँगलियों या कलाइयों की मदद से नचाते हुए फेंकता है जिससे कि बॉल टप्पा खाने के बाद नचते हुए अपने मूल दिशा से थोड़ा बाहर या अंदर की ओर मुड़ जाए। स्पिन गेंद का सामना करते समय बल्लेबाज़ को अत्यंत सतर्क रहना पड़ता है। थोड़ी सी चूक उनके लिए घातक साबित हो जाती है। स्पिन गेंदबाज़ी में ही बल्लेबाज़ के धैर्य की असली परीक्षा होती है।
स्पिन गेंदबाज़ी शुष्क और धीमी पिचों पर काफी असर दिखाती है। गेंद पुरानी होने पर और पिच के टूटने पर फिरकी गेंदबाज़ काफी खतरनाक हो जाते हैं। स्पिन गेंदबाज़ी मुख्यतः दो तरह की होती है
स्पिन गेंदबाज़ी बहुत कुछ उँगलियों और कलाइयों की गति पर निर्भर करती है। इस तरह की गेंदबाज़ी में गेंद की गति से ज्यादा मतलब नहीं होता है। स्पिन गेंदबाज़ी में गेंदबाज़ के हुनर के साथ साथ पिच की दशा का भी खूब रोल होता है। पिच पुरानी होने पर वह टूटने लगती है और वह गेंद को स्पिन कराने में काफी मददगार साबित होती है। साइंस की नज़र से देखें तो बॉल मैगनस इफेक्ट्स की वजह से डेविएट करती है।
भारत, पाकिस्तान समेत दक्षिण एशियाई देश स्पिन गेंदबाज़ी का स्वर्ग माना जाता है। इन देशों की पिचें स्लो तथा कम उछाल वाली होती हैं जो कि स्पिन गेंदबाज़ी के लिए खासी मददगार होती हैं। इन पिचों ने अनिल कुंबले, मुरलीधरन, अब्दुल कादिर आदि कई विश्वस्तरीय स्पिनरों को जन्म दिया है।
उपसंहार
स्विंग और स्पिन बॉलिंग बॉलरों के तरकश के अलग अलग किन्तु खतरनाक तीर हैं जिनका इस्तेमाल करके वे मैच का रुख भी मोड़ सकते हैं। स्विंग बॉलिंग में जहाँ बॉल की स्थिति जैसे सिलाई, खुरदुरापन आदि का महत्वपूर्ण रोल होता है वहीँ स्पिन बॉलिंग में पिच की स्थिति बहुत मायने रखती है। हालाँकि इन सब चीज़ों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण गेंदबाज़ का हुनर और अनुभव होता है।