भारत में जमीन की खरीद बिक्री के समय एक शब्द का सबसे ज्यादा जिक्र होता है और वह है खसरा और खतौनी। खसरा और खतौनी द्वारा ही राजस्व विभाग सभी जमीनों की पूरी जानकारी रखते हैं और खरीद बिक्री के समय इसके वास्तविक मालिक का पता लगाते हैं। खसरा और खतौनी जमीन के स्वामित्व के साथ साथ कई अन्य जानकारियों का विवरण देते हैं। आज के इस पोस्ट में हम इन्ही खसरा और खतौनी के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे और दोनों के बीच अंतर क्या है देखेंगे
खसरा भारत में कृषि से सम्बंधित जमीन का एक क़ानूनी रिकॉर्ड या डॉक्यूमेंट होता है। इस दस्तावेज में किसी खास जमीन के बारे में कई जानकारियां जैसे भूस्वामी का नाम, क्षेत्रफल, उसपर उगाई जाने वाली फसल का ब्यौरा आदि दी गयी रहती है। खसरा वास्तव में मूल भू अभिलेख होता है जिसपर जमीन के मालिक के जमीन का खसरा नंबर और उस जमीन के क्षेत्रफल के साथ साथ कई अन्य विवरण होते हैं। खसरा से जमीन के स्वामी के साथ साथ जमीन का क्षेत्रफल, जमीन की चौहद्दी , उगाई जाने वाली फसल, मिटटी, कौन खेती करता है सभी की जानकारी मिलती है। खसरा का प्रयोग शजरा नाम के एक अन्य दस्तावेज के साथ होता है जिसमे पुरे गांव का नक्शा दिया होता है। इस नक़्शे पर उस गांव की सभी जमीनों के स्वामियों का ब्यौरा रहता है। खसरा एक तरह से जमीनी रिकॉर्ड की इकाई होती है। हर खसरे का एक नंबर होता है जिससे इसकी पहचान होती है।
भारत और पाकिस्तान में खसरों का इतिहास बहुत ही पुराना है और यहाँ अंग्रेजों के पहले के भी खसरे मिलते हैं। इन खसरों से भारत और पाकिस्तान के इतिहास के बारे में कई जानकारियां भी प्राप्त होती हैं।
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खतौनी एक तरह का खाता नंबर होता है जिसमे किसी व्यक्ति या परिवार के स्वामित्व वाली सभी जमीनों की जानकारी दी गयी होती है। ये जमीन के टुकड़े एक साथ भी हो सकते हैं या अलग अलग स्थानों पर भी। सामान्यतः एक व्यक्ति की एक ही खतौनी होती है किन्तु कभी कभी यह एक से ज्यादा भी हो सकती है। खतौनी वास्तव में किसी व्यक्ति के सभी खसरों की जानकारी देने वाला रजिस्टर होता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि खतौनी किसी गांव में खसरों पर आधारित एक सार है जिसमे उस गांव में किसी व्यक्ति या परिवार की सभी खसरों को यानि जमीनों को सूचीबद्ध किया गया है।
खतौनी एक प्रकार से वार्षिक रजिस्टर होता है जिसे लैंड रेवेन्यू एक्ट 1951 के धारा 32 बचन बनाम कंकर AIR 1972 SC 2157 :(1972 ) 2 SCC 555 (1973 ), के अंतर्गत तैयार किया जाता है। इसे क़ानूनी दस्तावेज माना जाता है। इसे तैयार करने में पटवारी और काश्तकार दोनों की भूमिका होती है।
इसतरह से हम देखते हैं कि खतौनी एक सहायक भू अभिलेख होता है जिसमे किसी व्यक्ति के सारे खसरों का एक जगह पर ब्यौरा होता है।
दोस्तों इस प्रकार आपने देखा कि खसरा जमीन की इकाई होती है जबकि खतौनी किसी व्यक्ति के सारे खसरों का रजिस्टर होता है। खसरा नंबर को प्लाट नंबर भी कह सकते हैं। खसरा और खतौनी के माध्यम से ही किसी व्यक्ति के सभी जमीनों की जानकारी ली जा सकती है। उम्मीद है आपके सारे कन्फ्यूजन खसरा और खतौनी के सम्बन्ध में दूर हो गए होंगे।
dhruvsolanki
Dhanyawad jaankari ke liye
animesh
Bahut achhi jankari
Unknown
Bhunaksha me map ka pdf nahi khulta hai.kya kiya jaay
बेनामी
Thankx to clear my doubt, very helpful
Deepak Kumar
खसरे में 22 कालम और खतौनी में 13 कालम होते है आपने कुछ और बताया है इस लेख में
akhileshforyou
ji aapne ekdam sahi kaha, is truti ko sahi kiya jaa raha hai. dhanyawad
बेनामी
sir can you give which input data required for khasra or khatauni