हिंदी भाषा के व्याकरण में संधि और समास की अपनी उपयोगिता है। संधि और समास जहाँ नए शब्दों की रचना में अपनी भूमिका निभाते हैं वहीँ वाक्य के संक्षिप्तीकरण में भी सहायता करते हैं। संधि जहाँ दो वर्णों का मेल है वहीँ समास दो पदों को जोड़ता है। संधि और समास दोनों में ही योग होने के बावजूद दोनों अलग अलग हैं और दोनों में काफी अंतर है।
सन्धि जिसका शाब्दिक अर्थ है मेल या जोड़, हिंदी भाषा में वर्णों का एक गुण है जिसमे उनके संयोग एक नयी सार्थक ध्वनि की उत्पत्ति करते हैं। इसमें पहले शब्द की अंतिम ध्वनि दूसरे शब्द की पहली ध्वनि से मिलकर परिवर्तन लाती है।
अतः संधि की परिभाषा देते हुए हम कह सकते हैं कि दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार पैदा होता है संधि कहलाता है।
उदहारण :
चिर+आयु = चिरायु
हिम+आलय = हिमालय
प्रति+एक = प्रत्येक
संधि तीन प्रकार की होती है
स्वर संधि : दो स्वरों में मेल से जो ध्वनि पैदा होती है उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसे विद्या+आलय = विद्यालय, मुनि+इंद्र = मुनींद्र आदि।
स्वर संधि पांच प्रकार की होती है
दीर्घ संधि : अक सवर्ण दीर्घः अर्थात अक प्रत्याहार के बाद उसका स्वर्ण आये तो दोनों मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। इसके साथ ही ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आता है तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं।
उदहारण
धर्म+अर्थ = धर्मार्थ इसमें अ और अ मिलकर आ की ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं।
रवि +इंद्र = रवींद्र इसमें इ और इ मिलकर ई ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं।
भानु +उदय = भानूदय इसमें उ तथा उ मिलकर ऊ की ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
गुण संधि : अ, आ के साथ इ, ई को मिलाने से ए की ध्वनि उत्पन्न होती है। इसी तरह अ, आ के साथ उ, ऊ को मिलाने से ओ की ध्वनि उत्पन्न होती है और अ, आ के साथ ऋ हो तो अर बनता है। इस तरह की संधि गुण संधि कहलाती है।
उदहारण
नर+इंद्र = नरेंद्र, यहाँ अ तथा इ मिलकर ए की ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
ज्ञान+उपदेश= ज्ञानोपदेश, इसमें अ तथा उ मिलकर ओ की ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
देव+ऋषि = देवर्षि, यहाँ अ और ऋ मिलकर अर बनाते हैं।
वृद्धि संधि : कई बार जब अ या आ ए या ऐ से मिलते हैं तो यह ऐ हो जाता है और अ, आ को ओ, औ से मेल कराने पर औ हो जाता है। इस तरह की संधि को वृद्धि संधि कहते हैं।
उदहारण
एक+एक = एकैक
सदा+एव = सदैव
वन + औषधि = वनौषधि
यण संधि : इ, ई के आगे किसी विजातीय स्वर होने पर यह य हो जाता है। इसी तरह उ, ऊ के बाद किसी विजातीय स्वर आने पर उच्चारण व् हो जाता है। इसके साथ ही ऋ के आगे असमान स्वर आने से यह ऋ को र पढ़ा जाता है। इस तरह की संधि यण संधि कहलाती है।
उदहारण
इति + आदि = इत्यादि
सु +आगत = स्वागत
व्यंजन संधि : व्यंजन का व्यंजन से या किसी स्वर के मेल से जो विकार पैदा होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
व्यंजन संधि के उदहारण
दिक् + गज = दिग्गज
सत + भावना = सद्भावना
उत् + चारण = उच्चारण
विसर्ग संधि : विसर्ग के बाद स्वर अथवा व्यंजन के आने से जो विकार उत्त्पन्न होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
जैसे
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
निः + पाप = निष्पाप
निः + धन = निर्धन
उदहारण
राजा का पुत्र = राजपुत्र
रसोई का घर = रसोईघर
हिम का घर = हिमालय
पूर्वपद तथा उत्तरपद : किसी सामासिक शब्द के पहले पद को पूर्वपद तथा बाद वाले पद को उत्तर पद कहा जाता है। जैसे गंगाजल में गंगा पूर्वपद तथा जल उत्तरपद है।
समास कितने प्रकार के होते हैं :
समास छह प्रकार के होते हैं
जैसे
राजा का पुत्र = राजपुत्र
तुलसीदास द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
करण तत्पुरुष जैसे धनहीन अर्थात धन “से” हिन्
सम्प्रदान तत्पुरुष जैसे रसोईघर अर्थात रसोई “के लिए” घर
अपादान तत्पुरुष जैसे पथभ्रष्ट अर्थात पथ “से” भ्रष्ट
सम्बन्ध तत्पुरुष जैसे राजसभा अर्थात राजा “की” सभा
अधिकरण तत्पुरुष जैसे नगरवास अर्थात नगर “में” वास
कर्मधारय समास : ऐसे समास जिसमे उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद और उत्तरपद में विशेषण विशेष्य अथवा उपमान उपमेय का सम्बन्ध हो, कर्मधारय समास कहलाते हैं।
जैसे
घनश्याम अर्थात बादल जैसे काला
नीलकमल अर्थात नीला कमल
पीताम्बर अर्थात पीला वस्त्र
बहुव्रीहि समास : बहुव्रीहि समास के दोनों पद यानि पूर्वपद और उत्तरपद अप्रधान होते हैं। इसके साथ ही समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई अन्य सांकेतिक अर्थ प्रधान होता है।
जैसे
दशानन अर्थात दस है आनन् यानि रावण
चंद्रशेखर अर्थात जिसके सर पर चन्द्रमा है अर्थात शंकर
लम्बोदर अर्थात लम्बा है उदार जिसका यानि गणेश
द्विगु समास : ऐसे समास जिसका पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण हो द्विगु समास कहलाता है।
जैसे दोपहर, नौग्रह, चौमासा आदि
द्वंदव समास : जिस समास के दोनों ही पद प्रधान होते हैं और विग्रह करने पर “और” अथवा “या” तथा योजक चिन्ह लगते हैं, द्वंद्व समास कहलाते हैं। जैसे माता-पिता, भाई-बहन, दिन-रात आदि।
उपसंहार
Unknown
Pollusion
बेनामी
धन्यवाद
बेनामी
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